प्रथमः पाठः – संगच्छध्वं संवदध्वम् (एक साथ मिलें और बात करें)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. संज्ञानसूक्तं सस्वरं पठत स्मरत लिखत च । (संज्ञासूक्त को जोर से पढ़ें, याद करें और लिखें। )
२. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूरे वाक्यों में लिखें:)
(क) सर्वेषां मनः कीदृशं भवेत् ? (हर किसी का मन कैसा होना चाहिए?)
उत्तरम् : सर्वेषां मनः सामञ्जस्ययुक्तं सौहार्दपूर्णं च भवेत्। (सभी का मन सामंजस्यपूर्ण और सद्भाव से भरा होना चाहिए।)
(ख) “सङ्गच्छध्वं संवदध्वम्” इत्यस्य कः अभिप्रायः ? (“मिलना और बात करना” का क्या मतलब है?)
उत्तरम् : “सङ्गच्छध्वं संवदध्वम्” इत्यस्य अभिप्रायः अस्ति यः मानवः समाजे ऐक्यभावेन मिलित्वा गच्छेत् तथा परस्परं सम्यक् विचारविनिमयं कुर्यात्। (“सङ्गच्छध्वं संवदध्वम्” का अर्थ है कि मनुष्य समाज में एकता के साथ चलें और एक दूसरे के साथ विचारों का उचित आदान-प्रदान करें।)
(ग) सर्वे किं परित्यज्य ऐक्यभावेन जीवेयुः? (सभी को क्या त्याग कर एकता में रहना चाहिए?)
उत्तरम् : सर्वे वैमनस्यं परित्यज्य ऐक्यभावेन जीवेयुः। (सभी को शत्रुता त्यागकर एकता से रहना चाहिए।)
(घ) अस्मिन् पाठे का प्रेरणा अस्ति? (इस पाठ की प्रेरणा क्या है?)
उत्तरम् : अस्मिन् पाठे मानवजातेः ऐक्यभावेन सहकार्यं कृत्वा सुखपूर्वकं जीवनं यापनस्य प्रेरणा अस्ति। (यह पाठ मानवजाति के लिए एकता में खुशी-खुशी रहने की प्रेरणा है।)
३. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत।
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाएँ।)
(क) परमेश्वरः सर्वत्र व्याप्तः अस्ति। (ईश्वर सर्वव्यापी है।)
उत्तरम्: कः सर्वत्र व्याप्तः अस्ति? (कौन सर्वव्यापी है?)
(ख) वयम् ईश्वरं नमामः। (हम भगवान को नमन करते हैं।)
उत्तरम्: वयं कं नमामः? (हम किसे नमन करते हैं?)
(ग) वयम् ऐक्यभावेन जीवामः। (हम एकता के भाव से जीते हैं।)
उत्तरम्: वयं कथं जीवामः? (हम कैसे जीते हैं?)
(घ) ईश्वरस्य प्रार्थनया शान्तिः प्राप्यते। (ईश्वर से प्रार्थना करने से शांति मिलती है।)
उत्तरम्: कस्य प्रार्थनया शान्तिः प्राप्यते? (किसकी प्रार्थना से शांति मिलती है?)
(ङ) अहं समाजाय श्रमं करोमि। (मैं समाज के लिए कड़ी मेहनत करता हूं।)
उत्तरम्: कस्मै अहं श्रमं करोमि? (मैं किसके लिए काम कर रहा हूँ?)
(च) अयं पाठः ऋग्वेदात् सङ्कलितः। (यह अध्याय ऋग्वेद से संकलित है।)
उत्तरम्: अयं पाठः कस्मात् सङ्कलितः? (यह अध्याय किससे संकलित है?)
(छ) वेदस्य अपरं नाम श्रुतिः। (वेदों का दूसरा नाम श्रुति है।)
उत्तरम्: कस्य अपरं नाम किम्? (किसका दूसरा नाम क्या है?)
(ज) मन्त्राः वेदेषु भवन्ति। (मंत्र वेदों में हैं।)
उत्तरम्: मन्त्राः कुत्र भवन्ति? (मंत्र कहां मिलते हैं?)
४. पट्टिकातः शब्दान् चित्वा अधोलिखितेषु मन्त्रेषु रिक्तस्थानानि पूरयत.
(तालिका में दिए गए शब्दों को चुनकर नीचे लिखे मंत्रों के रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।)
संवदध्वं, समितिः, आकूतिः, भागं, मनः, हृदयानि, जानाना, समानं, मनो, हविषा, सुसहासति, मनांसि
संवदध्वं – साथ मिलकर बोलो / संवाद करो
समितिः – सभा / संगठन
आकूतिः – संकल्प / इच्छा
भागं – हिस्सा / भाग
मनः – मन
हृदयानि – हृदय
जानाना – जानने वालों का / लोगों का
समानं – समान / एक जैसा
मनो – मन (मनः का ही रूप)
हविषा – आहुति / अर्पण
सुसहासति – उत्तम प्रकार से सहन करने वाला / सबके लिए मंगलकारी
मनांसि – मन (बहुवचन रूप)
(क) सङ्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सं जानाना उपासते।
भावार्थ-
“तुम सब मिलकर चलो, मिलकर बोलो, तुम्हारे मन एक हों।
जैसे प्राचीन देवता मिलकर भाग (हविष्य) को स्वीकार करते थे, वैसे ही तुम भी एक मन होकर उपासना करो।”
(ख)
समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि।
भावार्थ-
“सबका मंत्र (विचार) समान हो, सभा समान विचार वाली हो, सबका मन और चित्त एक हो। मैं तुम्हें समान मंत्र से प्रेरित करता हूँ और समान आहुति से यज्ञ करता हूँ।”
(ग)
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति।
भावार्थ-
“तुम्हारा संकल्प एक हो, हृदय एक समान हों और मन भी एक जैसा हो, ताकि तुम सबके बीच उत्तम सामंजस्य और सौहार्द बना रहे।”
५.. पाठे प्रयुक्तान् शब्दान् भावानुसारं परस्परं योजयत –
(“पाठ में प्रयुक्त शब्दों को उनके भाव (अर्थ) के अनुसार परस्पर जोड़ो।”)
(क) संगछध्वम् सेवन्ते
(ख) संवदध्वम् चित्तम्
(ग) मनः मिलित्वा चलत
(घ) उपासते सङ्कल्पः
(ङ) वसूनि समस्तानि
(च) विश्वानि एकस्वरेण वदत
(छ) आकूतिः धनानि
उत्तरम्:
(क) सङ्गच्छध्वम् → (i) मिलित्वा चलत
(ख) संवदध्वम् → (ii) एकस्वरेण वदत
(ग) मनः → (iii) चित्तम्
(घ) उपासते → (iv) सेवन्ते
(ङ) वसूनि → (v) धनानि
(च) विश्वानि → (vi) समस्तानि
(छ) आकूतिः → (vii) सङ्कल्पः
उत्तर:
क–i, ख–ii, ग–iii, घ–iv, ङ–v, च–vi, छ–vii
६. उदाहरणानुसारेण लट्-लकारस्य वाक्यानि लोट्-लकारेण परिवर्तयत –
(उदाहरण के अनुसार लट्-लकार के वाक्यों को लोट्-लकार में बदलकर लिखिए।)
यथा— बालिकाः नृत्यन्ति ‘बालिकाः नृत्यन्तु
(क) बालकाः हसन्ति —————–
(ख) युवां तत्र गच्छथः —————–
(ग) यूयं धावथ —————–
(घ) आवां लिखावः —————–
(ङ) वयं पठामः —————–
उत्तरम्:
संख्या | लट्-लकार (वर्तमान काल) | अर्थ (हिन्दी) | लोट्-लकार (आज्ञा/आदेश) | अर्थ (हिन्दी) |
---|---|---|---|---|
(क) | बालकाः हसन्ति | बालक हँसते हैं। | बालकाः हसन्तु | बालक हँसें। (आज्ञा) |
(ख) | युवां तत्र गच्छथः | तुम दोनों वहाँ जाते हो। | युवां तत्र गच्छतम् | तुम दोनों वहाँ जाओ। (आज्ञा) |
(ग) | यूयं धावथ | तुम लोग दौड़ते हो। | यूयं धावत | तुम लोग दौड़ो। (आज्ञा) |
(घ) | आवां लिखावः | हम दोनों लिखते हैं। | आवां लिखाव | हम दोनों लिखें। (संकल्प/प्रस्ताव) |
(ङ) | वयं पठामः | हम पढ़ते हैं। | वयं पठाम | हम पढ़ें। (संकल्प/आमन्त्रण) |
द्वितीयः पाठः- अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका (छोटी-छोटी वस्तुओं की एकता भी कार्य को सिद्ध करती है)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत. (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए।)
(क) मित्राणि ग्रीष्मावकाशे कुत्र गच्छन्ति? (ग्रीष्मावकाश में मित्र कहाँ जाते हैं?)
उत्तरम्: ग्रामम्। (गाँव)
(ख) सर्वत्र कः प्रसृतः? (हर जगह कौन फैला हुआ है?)
उत्तरम्: वृक्षः। (वृक्ष)
(ग) कः सर्वान् प्रेरयन् अवदत्?(सबको प्रेरित करके किसने कहा?)
उत्तरम्: शिक्षकः। (शिक्षक)
(घ) कः हितोपदेशस्य कथां श्रावयति? (हितोपदेश की कहानी कौन सुनाता है?)
उत्तरम्: शिक्षकः। (शिक्षक)
(ङ) कपोतराजस्य नाम किम्? (कबूतरों के राजा का क्या नाम है?)
उत्तरम्: चित्रग्रीवः। (चित्रग्रीव)
(च) व्याधः कान् विकीर्य जालं प्रसारितवान्? (शिकारी ने किस पर जाल फैलाया?)
उत्तरम्: कपोतान्। (कबूतरों पर)
(छ) विपत्काले विस्मयः कस्य लक्षणम्? (विपत्ति के समय चकित होना किसका लक्षण है?)
उत्तरम्: मूर्खस्य। (मूर्ख का)
(ज) चित्रग्रीवस्य मित्रं हिरण्यकः कुत्र निवसति? (चित्रग्रीव का मित्र हिरण्यक कहाँ रहता है?)
उत्तरम्: वने। (जंगल में)
(झ) चित्रग्रीवः हिरण्यकं कथं सम्बोधयति? (चित्रग्रीव हिरण्यक को किस प्रकार संबोधित करता है?)
उत्तरम्: प्रियसख। (प्रिय मित्र)
(ञ) पूर्वं केषां पाशान् छिनत्तु इति चित्रग्रीवः वदति? (चित्रग्रीव सबसे पहले किसके बंधन काटने को कहता है?)
उत्तरम्: शिशूनाम्। (बच्चों के)
२. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत – (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए।)
(क) प्रश्न: यदा केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन् किम् अभवत्? (जब वे केदार क्षेत्र की ओर चढ़ रहे थे, तब क्या घटित हुआ?)
उत्तरम्: यदा ते केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन्, तदा पर्वतेषु हिमवृष्टिः अभवत्। (जब वे केदार क्षेत्र की ओर चढ़ रहे थे, तब पर्वतों पर हिमपात होने लगा।)
(ख) प्रश्न: सर्वे उच्चस्वरेण किं प्रार्थयन्त? (सभी लोग ऊँचे स्वर में क्या कहकर प्रार्थना कर रहे थे?)
उत्तरम्: सर्वे जनाः उच्चस्वरेण “ईश्वरः रक्षतु” इति प्रार्थयन्त। (सभी लोग ऊँचे स्वर में “ईश्वर रक्षा करें” यह प्रार्थना कर रहे थे।)
(ग) प्रश्न: असम्भवं कार्यं कथं कर्तुं शक्यते इति नायकः उक्तवान्? (असंभव कार्य कैसे किया जा सकता है — नायक ने क्या कहा?)
उत्तरम्: नायकः उक्तवान् – “यत्र इच्छा तत्र मार्गः”, इत्यनेन असम्भव कार्यं अपि सम्भवम् भवति। (नायक ने कहा – “जहाँ इच्छा है वहाँ मार्ग है”, इससे असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।)
(घ) प्रश्न: निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा चित्रग्रीवः किं निरूपयति? (निर्जन वन में चावल के दाने देखकर चित्रग्रीव क्या बताता है?)
उत्तरम्: चित्रग्रीवः निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा तान् जालस्य संकेतः इति निरूपयति। (चित्रग्रीव चावल के दानों को देखकर कहता है कि यह जाल का संकेत है।)
(ङ) प्रश्न: किं नीतिवचनं प्रसिद्धम्? (कौन-सा नीति-वचन प्रसिद्ध है?)
उत्तरम्: “विपत्तौ विवेकः आवश्यकः” इति नीतिवचनं प्रसिद्धम्। (“विपत्ति के समय विवेक आवश्यक है” यह नीति-वचन प्रसिद्ध है।)
(च) प्रश्न: व्याधात् रक्षां प्राप्तुं चित्रग्रीवः कम् आदेशं दत्तवान्? (शिकारी से बचने के लिए चित्रग्रीव ने किसे आदेश दिया?)
उत्तरम्: चित्रग्रीवः हिरण्यकं आदेशं दत्तवान् यत् सः व्याधस्य जालं छिन्तु। (चित्रग्रीव ने हिरण्यक को आदेश दिया कि वह शिकारी का जाल काट दे।)
(छ) प्रश्न: हिरण्यकः किमर्थं तूष्णीं स्थितः? (हिरण्यक चुप क्यों खड़ा रहा?)
उत्तरम्: हिरण्यकः दुःखितं मित्रं दृष्ट्वा करुणया तूष्णीं स्थितः। (हिरण्यक अपने दुःखी मित्र को देखकर दया से मौन खड़ा रहा।)
(ज) प्रश्न: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं कथं प्रशंसति? (प्रसन्न हिरण्यक चित्रग्रीव की किस प्रकार प्रशंसा करता है?)
उत्तरम्: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं साहसी, धैर्यशीलः इति प्रशंसति। (पुलकित हिरण्यक चित्रग्रीव को साहसी और धैर्यशील कहकर उसकी प्रशंसा करता है।)
(झ) प्रश्न: कपोताः कथं आत्मरक्षणं कृतवन्तः? (कबूतरों ने अपनी रक्षा कैसे की?)
उत्तरम्: कपोताः एकत्र मिलित्वा समवेतबलस्य उपयोगेन आत्मरक्षणं कृतवन्तः। (कबूतरों ने मिलकर सामूहिक शक्ति का उपयोग करके आत्मरक्षा की।)
(ञ) प्रश्न: नायकस्य प्रेरकवचनैः सर्वेऽपि किम् अकुर्वन्? (नायक के प्रेरक वचनों से सबने क्या किया?)
उत्तरम्: नायकस्य प्रेरकवचनैः प्रेरिताः सर्वेऽपि कठिन कार्ये अपि साहसं कृतवन्तः। (नायक के प्रेरक वचनों से सबने कठिन कार्यों में भी साहस दिखाया।)
३. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा ल्यप् प्रत्ययान्तेषु परिवर्तयत –
(“नीचे लिखे वाक्यों को पढ़कर उन्हें ल्यप् प्रत्यय (तुमुन् / ल्यप् ) में परिवर्तित कीजिए।”)
(क) छात्रः कक्षां प्रविशति । संस्कृतं पठति । “कक्ष प्रविश्य संस्कृतं पठति ।
(ख) भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति । ——————-
(ग) माता भोजनं निर्माति । पुत्राय ददाति । ——————-
(घ) सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति । ——————-
(ङ) रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। ——————-
(च) अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। ——————-
(छ) तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। ——————-
(ज) व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति । ——————–
उत्तरम्:
ल्यप् प्रत्यय के साथ संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद
मूल संस्कृत | परिवर्तित संस्कृत |
---|---|
छात्रः कक्षां प्रविशति। संस्कृतं पठति। (छात्र कक्षा में प्रवेश करता है। संस्कृत पढ़ता है।) | कक्षां प्रविश्य संस्कृतं पठति। (कक्षा में प्रवेश करके संस्कृत पढ़ता है।) |
भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति। (भक्त मंदिर में आता है। पूजा करता है।) | मन्दिरम् आगम्य पूजां करोति। (मंदिर में आकर पूजा करता है।) |
माता भोजनं निर्माति। पुत्राय ददाति। (माता भोजन बनाती है। पुत्र को देती है।) | भोजनं निर्माय पुत्राय ददाति। (भोजन बनाकर पुत्र को देती है।) |
सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति। (सुरेश प्रातः उठता है। देव को नमस्कार करता है।) | प्रातः उत्थाय देवं नमति। (प्रातः उठकर देव को नमस्कार करता है।) |
रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। (रमा पुस्तक स्वीकार करती है। विद्यालय जाती है।) | पुस्तकं स्वीकृत्य विद्यालयं गच्छति। (पुस्तक स्वीकार करके विद्यालय जाती है।) |
अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। (मैं घर आता हूँ। भोजन करता हूँ।) | गृहम् आगम्य भोजनं करोमि। (घर आकर भोजन करता हूँ।) |
तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। (वह चावल के दाने बिखेरता है। जाल फैलाता है।) | तण्डुलकणान् विकीर्य जालं विस्तारयति। (चावल के दाने बिखेरकर जाल फैलाता है।) |
व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति। (शिकारी चावल के दानों को देखता है। भूमि पर उतरता है।) | तण्डुलकणान् अवलोक्य भूमौ अवतरति। (चावल के दानों को देखकर भूमि पर उतरता है।) |
४. उदाहरणानुसारम् उपसर्गयोजनेन क्त्वा–स्थाने ल्यप्–प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा पदानि परिवर्तयत —
(उदाहरण के अनुसार उपसर्ग जोड़कर क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग करके पदों को बदलिए।)
सम्, आ, उप, उत्, वि, प्र
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति । “छात्रः गृहम् आगत्य (आ+ गम् + ल्यप्) भोजनं करोति ।
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। ———————————-
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति । ———————————-
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति । ———————————-
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति । ———————————-
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति ।———————————-
उत्तरम्:
“ल्यप् प्रत्यय तथा उपसर्ग के प्रयोग वाले संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद।”
मूल संस्कृत (Original Sanskrit) | परिवर्तित संस्कृत (Converted Sanskrit) | हिंदी (पुनर्लिखित) |
---|---|---|
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति। | छात्रः गृहम् आगत्य (आ + गम् + ल्यप्) भोजनं करोति। | छात्र घर जाकर भोजन करता है। → छात्र घर आकर भोजन करता है। |
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। | माता वस्त्राणि प्रक्षाल्य (प्र + क्षल् + ल्यप्) पचति। | माता वस्त्र धोकर भोजन बनाती है। → माता वस्त्र प्रक्षालन करके भोजन बनाती है। |
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति। | शिक्षकः श्लोकं संलिख्य (सम् + लिख् + ल्यप्) पाठयति। | शिक्षक श्लोक लिखकर पढ़ाता है। → शिक्षक श्लोक संकलन करके पढ़ाता है। |
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति। | रमा उपस्थाय (उप + स्था + ल्यप्) गीतं गायति। | रमा खड़े होकर गीत गाती है। → रमा उपस्थित होकर गीत गाती है। |
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति। | शिष्यः सर्वदा गुरुं प्रणम्य (प्र + नम् + ल्यप्) पठति। | शिष्य हमेशा गुरु को नमस्कार करके पढ़ता है। → शिष्य हमेशा गुरु को प्रणाम करके पढ़ता है। |
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति। | लेखकः आलोचनं विकृत्य (वि + कृ + ल्यप्) लिखति। | लेखक आलोचना करके लिखता है। → लेखक आलोचना विश्लेषण करके लिखता है। |
५. पाठे प्रयुक्तेन उपयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत –
(पाठ में प्रयुक्त उपयुक्त पद से रिक्त स्थान को पूरा करें।)
क्रमांक | संस्कृत वाक्य | उत्तर | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|---|
(क) | सर्वैः एकचित्तीभूय———————उड्डीयताम्। | आकृष्टाः (आकर्षित होकर) | सब कबूतर एक मन होकर आकर्षित होकर उड़ गए। |
(ख) | जालापहारकान् तान् ——————— पश्चाद् अधावत्। | दृष्ट्वा (देखकर) | जाल लेकर जा रहे उन कबूतरों को देखकर वह पीछे दौड़ा। |
(ग) | अस्माकं मित्रं ——————— नाम मूषकराजः गण्डकीतीरे चित्रवने निवसति । | हिरण्यकः (चूहे का नाम) | हमारा मित्र हिरण्यक नाम का मूषकराज गण्डकी नदी के किनारे चित्रवन में रहता है। |
(घ) | हिरण्यकः कपोतानाम् ——————— चकितस्तूष्णीं स्थितः । | अवस्थाम् (स्थिति / अवस्था) | हिरण्यक कबूतरों की स्थिति देखकर चकित होकर चुपचाप खड़ा रहा। |
(ङ) | यतोहि विपत्काले ——————— एव कापुरुषलक्षणम्। | विस्मयः (चकित होना / आश्चर्य करना) | क्योंकि विपत्ति के समय चकित रह जाना ही कायरता का लक्षण है। |
६. पाठे प्रयुक्तेन ल्यप्प्रत्ययान्तपदेन सह उपयुक्तं पदं योजयत – (पाठ में प्रयुक्त ल्यप्-प्रत्ययान्त (ल्यप् प्रत्यय से बने) शब्द के साथ उपयुक्त शब्द को मिलाइए।)

उत्तरम्:
क्रमांक | संस्कृत (ल्यप् पद) | उपयुक्त पदम् | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|---|
(क) | विकीर्य | जालम् | जाल को बिखेरकर |
(ख) | विस्तीर्य | जालापहारकान् | जाल ले जा रहे पक्षियों की ओर फैलकर |
(ग) | अवतीर्य | भूमौ | भूमि पर उतरकर |
(घ) | अवलोक्य | तद्वचनम् | उस कथन को देखकर |
(ङ) | एकचित्तीभूय | उड्डीयताम् | एक मन होकर उड़ चलो |
(च) | प्रत्यभिज्ञाय | तण्डुलकणान् | चावल के दानों को पहचानकर |
७. समासयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत – (समासयुक्त शब्द से रिक्त स्थान को भरें।)
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम् तस्मिन् = गण्डकीतीरे
(ख) तण्डुलानां कणाः = ——————- तान् = ——————-
(ग) जालस्य अपहारकाः = —————— तान् = ——————-
(घ) अवपाताद् भयम् = ——————– तस्मात् = ——————-
(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् = ——————– तस्मिन् = ———————
उत्तरम्:
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम्
तस्मिन् = गण्डकीतीरे
हिंदी : गण्डकी नदी का किनारा = गण्डकीतीरम्, उस पर = गण्डकीतीरे
(ख)
तण्डुलानां कणाः = तण्डुलकणाः
तान् = तण्डुलकणान्
हिंदी : चावल के दाने = तण्डुलकणाः, उन दानों को = तण्डुलकणान्
(ग)
जालस्य अपहारकाः = जालापहारकाः
तान् = जालापहारकान्
हिंदी : जाल चुराने वाले / जाल ले जाने वाले = जालापहारकाः, उन चोरों को = जालापहारकान्
(घ)
अवपाताद् भयम् = अवपातभयम्
तस्मात् = अवपातभयात्
हिंदी : गिरने का भय = अवपातभयम्, उस भय से = अवपातभयात्
(ङ)
कापुरुषाणां लक्षणम् = कापुरुषलक्षणम्
तस्मिन् = कापुरुषलक्षणे
हिंदी : कायर व्यक्ति का लक्षण = कापुरुषलक्षणम्, उस लक्षण में = कापुरुषलक्षणे
८. सार्थकपदं ज्ञात्वा सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(सार्थक शब्द को पहचानकर उसका संधि-विच्छेद कीजिए।)
(क) इत्याकर्ण्य = इति + आकर्ण्य ।
(ख) चित्रग्रीवोऽवदत् = चित्रग्रीवः + अवदत् ।
(ग) बालकोऽत्र = ————– + ————— +
(घ) धैर्यमथाभ्युदये = ————– + ————— + —————–
(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् = ————– + ————— + —————–
(च) नमस्ते =—————- + ——————
(छ) उपायश्चिन्तनीयः =————— + ——————
(ज) व्याधस्तत्र =————— + ——————
(झ) हिरण्यकोऽप्याह = ————— + ———— + ——————
(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे = ————— + – ———— + ——————
(ट) अतस्त्वाम् = ————— + ————
(ठ) कश्चित् = ————– + ————
उत्तरम्:
क्रमांक | संस्कृत शब्द | संधि-विच्छेद |
---|---|---|
(क) | इत्याकर्ण्य | इति + आकर्ण्य |
(ख) | चित्रग्रीवोऽवदत् | चित्रग्रीवः + अवदत् |
(ग) | बालकोऽत्र | बालकः + अत्र |
(घ) | धैर्यमथाभ्युदये | धैर्यम् + अथ + अभ्युदये |
(ङ) | भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् | भोजने + अपि + अप्रवर्तनम् |
(च) | नमस्ते | नमः + ते |
(छ) | उपायश्चिन्तनीयः | उपायः + चिन्तनीयः |
(ज) | व्याधस्तत्र | व्याधः + तत्र |
(झ) | हिरण्यकोऽप्याह | हिरण्यकः + अपि + आह |
(ञ) | मूषकराजो गण्डकीतीरे | मूषकराजः + गण्डकी + तीरे |
(ट) | अतस्त्वाम् | अतः + त्वाम् |
(ठ) | कश्चित् | कः + चित् |
ततीयः पाठः- सुभाषितस्सं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु (सुंदर वचनों (सुभाषितों) का सेवन करके अपना जीवन सफल बनाओ।)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत –(पाठ के आधार पर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें)
(क) गीतानि के गायन्ति ? (गीत कौन गाते हैं?)
उत्तर: देवाः (देवता गीत गाते हैं।)
(ख) कः बलं न वेत्ति ? (कौन बल को नहीं जानता?)
उत्तर: मषूकः (मच्छर बल को नहीं जानता।)
(ग) कः वसन्तस्य गुणं वेत्ति ? (वसंत ऋतु का गुण कौन जानता है?)
उत्तर: कविः (कवि वसंत ऋतु का गुण जानता है।)
(घ) मषूकः कस्य बलं न वेत्ति ? (मच्छर किसके बल को नहीं जानता?)
उत्तर: अनिलस्य (मच्छर वायु का बल नहीं जानता।)
(ङ) फलोद्गमैः के नम्राः भवन्ति ? (फलों के भार से कौन झुक जाते हैं?)
उत्तर: वृक्षाः (वृक्ष फलों के कारण झुक जाते हैं।)
(च) केन समसख्यं न करणीयम् ? (किसके साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए?)
उत्तर: दुष्टैः (दुष्टों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए।)
(छ) केन विना दैवं न सिध्यति ? (किसके बिना दैव सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषेण (पुरुष के बिना दैव सफल नहीं होता।)
२. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत – (पाठ के आधार पर नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखें।)
(क) तरवः कदा नम्राः भवन्ति ? (वृक्ष कब झुक जाते हैं?)
उत्तर: तरवः फलोद्गमैः नम्राः भवन्ति। (वृक्ष फलों के कारण झुक जाते हैं।)
(ख) समृद्धिभिः के अनुद्धताः भवन्ति ? (समृद्धि के बाद कौन घमंडी नहीं होते?)
उत्तर: सत्पुरुषाः समृद्धिभिः अनुद्धताः भवन्ति। (सज्जन लोग समृद्धि पाकर भी घमंडी नहीं होते।)
(ग) सत्पुरुषाणां स्वभावः कीदृशः भवति ? (सज्जनों का स्वभाव कैसा होता है?)
उत्तर: सत्पुरुषाणां स्वभावः सज्जनता-पूरितः, दयालुः च भवति। (सज्जनों का स्वभाव विनम्र और दयालु होता है।)
(घ) सत्यम् कदा सत्यम् न भवति ? (सत्य कब सत्य नहीं माना जाता?)
उत्तर: हितं विना उक्तं सत्यम् सत्यम् न भवति। (जो सत्य हितकारी नहीं होता, वह सत्य नहीं माना जाता।)
(ङ) दैवं कदा न सिध्यति ? (भाग्य कब सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषकारं विना दैवं न सिध्यति। (पुरुषार्थ के बिना भाग्य सफल नहीं होता।)
३. स्तम्भयोः मेलनंकुरुत - (दोनों स्तम्भों का मिलान करें)
उत्तर: – संख्या | (अ) उक्तिः (संस्कृत में) | (आ) भावार्थः (संस्कृत में) | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|---|
१ | गायन्ति देवाः किल गीतकानि | भारतभूमेः माहात्म्यवर्णनम् | देवता इस भारतभूमि के गीत गाते हैं – भारत की महिमा का वर्णन। |
२ | गुणी गुणं वेत्ति | सज्जनः एव गुणानां मर्मज्ञः | गुणों की पहचान केवल गुणी व्यक्ति ही कर सकता है। |
३ | भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः | सत्पुरुषाणां स्वाभाविकी नम्रता | जैसे वृक्ष फल आने पर झुक जाते हैं, वैसे ही सज्जनों में स्वाभाविक नम्रता होती है। |
४ | यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते | सुवर्णं चतुर्भिः प्रकारैः परीक्ष्यते | जैसे सोने की परीक्षा चार प्रकार से होती है। |
५ | अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति | प्रज्ञा, दमः, दानं, कृतज्ञता इत्यादयः | आठ गुण (जैसे बुद्धि, संयम, दान, कृतज्ञता आदि) मनुष्य को प्रकाशित करते हैं। |
६ | दुर्जनेन समं सख्यं न कारयेत् | दुष्टसङ्गः उष्णाङ्गारसदृशः | दुष्टों की संगति जलते अंगारे के समान होती है, इसलिए उनसे मित्रता नहीं करनी चाहिए। |
७ | एकेन चक्रेण न रथस्य गतिः | केवलं दैवं प्रयत्नं विना असिद्धम् | जैसे रथ एक पहिए से नहीं चल सकता, वैसे ही केवल भाग्य से, बिना प्रयत्न के, सफलता नहीं मिलती। |
४. अधः प्रदत्तमञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत (नीचे दी गई मञ्जूषा से शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।)
फलोद्गमैः = फलों से / परिणामों से
गुणं = गुण / विशेषता
कृतज्ञता = आभार / उपकार की पहचान
सिध्यति = सिद्ध होता है / पूर्ण होता है
श्रुतम् = सुना हुआ / शिक्षा / विद्या
शीलेन = अच्छे आचरण से / सद्गुण से
(क) गुणी ———— वेत्ति, न वेत्ति निर्गुणः ।
उत्तर: गुणंहिंदी: गुणी व्यक्ति ही गुण को पहचानता है, निर्गुण व्यक्ति उसे नहीं पहचानता।
(ख) भवन्ति नम्राः तरवः ————— ।
उत्तर: फलोद्गमैः
हिंदी: वृक्ष फलों से लद जाने पर विनम्र हो जाते हैं।
(ग) पुरुषः परीक्ष्यते कुलेन, —————-, गुणेन, कर्मणा ।
उत्तर: शीलेन
हिंदी: मनुष्य की परीक्षा उसके कुल, आचरण, गुण और कर्म से होती है।
(घ) गुणाः पुरुषं दीपयन्ति – प्रज्ञा, कौल्यं, दमः, ————– ।
उत्तर: कृतज्ञता
हिंदी: बुद्धि, शील, संयम और कृतज्ञता – ये गुण मनुष्य को श्रेष्ठ बनाते हैं।
(ङ) दानं यथाशक्ति —————- च।
उत्तर: श्रुतम्
हिंदी: मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए और विद्या अर्जित करनी चाहिए।
(च) एवं पुरुषकारेण विना दैवं न —————।
उत्तर: सिध्यति
हिंदी: प्रयत्न के बिना केवल भाग्य से सफलता प्राप्त नहीं होती।
५. समुचितं विकल्पं चिनुत –
(उचित विकल्प चुनें)
(क) “गायन्ति देवाः किल गीतकानि” – इत्यस्य श्लोकस्य मुख्यविषयः कः ?
उत्तरम्: (ii) भारतभूमेः गौरवम्
हिंदी अनुवाद: इस श्लोक का मुख्य विषय भारतभूमि का गौरव है।
(ख) “गुणी गुणं वेत्ति” – इत्यत्र कः गुणं न जानाति ?
उत्तरम्: (ii) निर्गुणः
हिंदी अनुवाद: इस कथन में कहा गया है कि निर्गुण व्यक्ति गुण को नहीं जानता।
(ग) “पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः” – इत्यस्य तात्पर्यं किम् ?
उत्तरम्: (ii) सुजन एव गुणं जानाति
हिंदी अनुवाद: इस कथन का तात्पर्य है कि केवल सज्जन व्यक्ति ही गुणों को पहचान सकता है।
(घ) “भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः” – इत्यस्य अर्थः कः ?
उत्तरम्: (iii) फलयुक्ताः वृक्षाः नम्राः भवन्ति
हिंदी अनुवाद: फलों से लदे हुए वृक्ष स्वाभाविक रूप से झुक जाते हैं।
(ङ) “न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः ” – इत्यत्र सभायाः महत्त्वं किम् ?
उत्तरम्: (iii) धर्मोपदेशाय ज्ञानवृद्धाः जनाः आवश्यकाः
हिंदी अनुवाद: सभा में धर्मोपदेश के लिए ज्ञानी एवं वृद्ध जनों का होना आवश्यक है।
(च) दुर्जनेन सह सख्यं किमर्थं न कार्यम् ?
उत्तरम्: (iv) सः उष्णाङ्गारवद् हानिकरः भवति
हिंदी अनुवाद: दुष्ट व्यक्ति जलते हुए अंगारे की तरह हानिकारक होता है, इसलिए उससे मित्रता नहीं करनी चाहिए।
चतुर्थः पाठः- प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः (यह गोपबन्धु, महान मन वाला देशभक्त, वंदन के योग्य है।)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत –
(नीचे लिखे गए प्रश्नों के एक-शब्द में उत्तर लिखो।)
(क) समाज – दिनपत्रिकायाः प्रतिष्ठाता कः?
हिंदी: ‘समाज’ नामक दैनिक समाचार-पत्र की स्थापना किसने की थी?
उत्तरम्: गोपबन्धुः
(ख) गोपबन्धुः कस्मै स्वभोजनं दत्तवान्?
हिंदी: गोपबंधु ने अपना भोजन किसको दिया था?
उत्तरम्: भिक्षुकाय
(ग) मरणासन्नः कः आसीत्?
हिंदी: मृत्यु के निकट कौन था?
उत्तरम्: पुत्रः
(घ) गोपबन्धुः केन उपाधिना सम्मानितः अभवत्?
हिंदी: गोपबंधु को किस उपाधि से सम्मानित किया गया था?
उत्तरम्: उत्कलमणिः
(ङ) गोपबन्धुः कति वर्षाणि कारावासं प्राप्तवान्?
हिंदी: गोपबंधु को कितने वर्षों की जेल हुई थी?
उत्तरम्: द्वौ
२. एकवाक्येन उत्तरं लिखत –
(एक वाक्य में उत्तर लिखो।)
क्रमांक | प्रश्न (संस्कृत) | प्रश्न (हिंदी) | उत्तर (संस्कृत) | उत्तर (हिंदी) |
---|---|---|---|---|
क | गोपबन्धुः किमर्थम् अश्रुपूर्णनयनः अभवत्? | गोपबन्धु की आँखें आँसुओं से क्यों भर गईं? | मित्रस्य मरणं ज्ञात्वा गोपबन्धुः अश्रुपूर्णनयनः अभवत्। | अपने मित्र की मृत्यु जानकर गोपबन्धु की आँखें आँसुओं से भर गईं। |
ख | कीदृशं पुत्रं विहाय गोपबन्धुः समाजसेवाम् अकरोत्? | गोपबन्धु ने किस प्रकार के पुत्र को छोड़कर समाजसेवा की? | रोगपीडितं पुत्रं विहाय गोपबन्धुः समाजसेवाम् अकरोत्। | गोपबन्धु ने रोगग्रस्त पुत्र को छोड़कर समाजसेवा की। |
ग | गोपबन्धोः कृते “उत्कलमणिः” इति उपाधिः किमर्थं प्रदत्ता? | गोपबन्धु को “उत्कलमणि” की उपाधि क्यों दी गई? | समाजसेवायाम् अग्रणीभावेन कार्यं कृत्वा गोपबन्धोः कृते “उत्कलमणिः” इति उपाधिः प्रदत्ता। | समाजसेवा में अग्रणी कार्य करने के कारण गोपबन्धु को “उत्कलमणि” की उपाधि दी गई। |
घ | गोपबन्धुः कुत्र जन्म लब्धवान्? | गोपबन्धु ने कहाँ जन्म लिया? | गोपबन्धुः ओडिशाराज्ये जन्म लब्धवान्। | गोपबन्धु ने ओडिशा राज्य में जन्म लिया। |
ङ | गोपबन्धुः सर्वदा केषाम् उपयोगं कृतवान्? | गोपबन्धु ने सदा किसके लिए अपने जीवन का उपयोग किया? | गोपबन्धुः सर्वदा जनहिताय स्वजीवनस्य उपयोगं कृतवान्। | गोपबन्धु ने सदा जनहित के लिए अपने जीवन का उपयोग किया। |
३. कोष्ठके दत्तानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत –
(कोष्ठक में दिए गए शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाइए।)
सेवाम् = सेवा (सेवा करना / सेवा)
सुस्वादूनि = स्वादिष्ट (स्वादिष्ट वस्तुएँ / रुचिकर)
सहायताम् = सहायता (मदद)
स्वदेशवस्त्राणि = स्वदेशी वस्त्र (देश में बने कपड़े)
अन्यतमः = किसी एक / उनमें से एक
उत्तरम्:
क्रमांक | संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|
क | गोपबन्धुः सेवाम् आरभत। | गोपबन्धु ने सेवा शुरू की। |
ख | बालकः मित्राय सहायताम् दत्तवान्। | बालक ने मित्र को सहायता दी। |
ग | बालकाः पाठशालायां सुस्वादूनि भक्ष्याणि खादन्ति। | बच्चे पाठशाला में स्वादिष्ट भोजन खा रहे हैं। |
घ | रमा स्वदेशे वस्त्राणि दत्तवती। | रमा ने अपने देश में वस्त्र दान किए। |
ङ | गोपबन्धुः जनानां मध्ये अन्यतमः प्रतिष्ठितः। | गोपबन्धु लोगों में सबसे प्रतिष्ठित था। |
४. चित्रं दृष्ट्वा पञ्च वाक्यानि रचयत -
(चित्र देखकर पाँच वाक्य बनाएँ।)

(क) ……………………………………………….
(ख) ……………………………………………….
(ग) ……………………………………………….
(घ) ……………………………………………….
(ङ) ……………………………………………….
उत्तरम्:
इस चित्र को देखकर पाँच वाक्य इस प्रकार बनाए जा सकते हैं:
- पुरुषः बालकं चिकित्सालये नयति।
(पुरुष बच्चे को अस्पताल ले जा रहा है।) - बालकः दुःखितः दृश्यते।
(बच्चा दुखी दिखाई दे रहा है।) - चिकित्सालयस्य द्वारं खुले अस्ति।
(अस्पताल का द्वार खुला है।) - पुरुषः बालकं सहानुभूत्याः धारणया समालिङ्गति।
(पुरुष बच्चे को सहानुभूति से गले लगा रहा है।) - चिकित्सालये स्वास्थ्यम् सेवां प्रदत्तुम् सज्जम् अस्ति।
(अस्पताल स्वास्थ्य सेवा देने के लिए तैयार है।)
५. समुचितेन पदेन श्लोकं पूरयत –
(उचित शब्द से श्लोक को पूरा कीजिए।)
(क) ———————— मम लीयतां तनुः
(ख) उत्कलमणिरित्याख्यः प्रसिद्धो ————————–
(ग) स्वदेशलोकास्तदनु ———————– नु
(घ) स्वराज्यमार्गे यदि ———————,
(ङ)———————-परिपूरितास्तु सा
उत्तरम्:
(क) स्वदेशभूमौ मम लीयतां तनुः
हिंदी: मेरा शरीर स्वदेश की मिट्टी में विलीन हो जाए।
(ख) उत्कलमणिरित्याख्यः प्रसिद्धो लोकसेवकः
हिंदी: जिसे उत्कलमणि के नाम से जाना जाने वाला जनसेवक।
(ग) स्वदेशलोकास्तदनु प्रयान्तु नु
हिंदी: देशवासियों को मेरे पीछे चलना चाहिए।
(घ) स्वराज्यमार्गे यदि गर्तमालिका
हिंदी: अगर स्वतंत्रता के मार्ग में गड्ढों की श्रृंखला हो।
(ङ) ममास्थिमांसैः परिपूरितास्तु सा
हिंदी: वे गड्ढे मेरे अस्थि और मांस से भर जाएँ।
६. उदाहरणानुसारं क्रियापदं स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयत –
(उदाहरण के अनुसार क्रियापद को स्त्रीलिंग में बदलो।)
(यथा – गतवान् = गतवती)
क्रमांक | पुरुषलिङ्ग क्रियापद | स्त्रीलिङ्ग रूप | हिंदी अर्थ |
---|---|---|---|
क | गतवान् | गतवती | गया/गई है |
ख | प्राप्तवान् | प्राप्तवती | प्राप्त किया/की है |
ग | उपविष्टवान् | उपविष्टवती | बैठा/बैठी है |
घ | भक्तवान् | भक्तवती | भक्त हुआ/हुई है |
ङ | कृतवान् | कृतवती | किया/की है |
च | गहीतवान् | गहीत्वती | पकड़ा/पकड़ी है |
७. समुचितेन पदेन सह स्तम्भौ मेलयत –
(उचित शब्द के साथ स्तम्भों का मिलान कीजिए।)

उत्तरम्:
संस्कृत (स्तम्भ अ) | संस्कृत (स्तम्भ इ) | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|
1. समाजः | दिनपत्रिका | ‘समाज’ एक समाचार-पत्र (अखबार) है। |
2. ममास्थिमांसैः | परिपूरितास्तु | मेरी हड्डियाँ और मांस से भरे हुए हों। |
3. उत्कलमणिः | गोपबन्धुः | ‘उत्कलमणि’ उपाधि गोपबन्धु को दी गई थी। |
4. “आँ आँ” इति | क्रन्दनध्वनिः | “आँ आँ” एक रोने की ध्वनि है। |
5. सुस्वादूनि | व्यञ्जनानि | स्वादिष्ट चीजें = व्यंजन। |
८. घटनाक्रमेण वाक्यानि पुनः लिखत (क्रम से) –
(वाक्यों को घटनाओं के सही क्रम में फिर से लिखो।)
(क) भिक्षुकञ्च तद्भोजितवान्।
हिंदी: उन्होंने भिखारी को भोजन दिया।
(ख) प्रफुल्लचन्द्ररायः गोपबन्धुम् उत्कलमणिः इति उपाधिना सम्मानितवान्।
हिंदी: प्रफुल्लचंद्र राय ने गोपबंधु को ‘उत्कलमणि’ की उपाधि देकर सम्मानित किया।
(ग) गोपबन्धुः अश्रुपूर्णनयनोऽभवत्।
हिंदी: गोपबंधु की आँखें आँसुओं से भर गईं।
(घ) अतिथयो हस्तपादं क्षालयित्वा आसनेषु उपविष्टवन्तः।
हिंदी: अतिथियों ने हाथ-पैर धोकर आसनों पर बैठ गए।
(ङ) दिनत्रयात् किमपि न भुक्तम्।
हिंदी: तीन दिन से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया।
उत्तरम्:
(ङ) दिनत्रयात् किमपि न भुक्तम्।
(घ) अतिथयो हस्तपादं क्षालयित्वा आसनेषु उपविष्टवन्तः।
(ग) गोपबन्धुः अश्रुपूर्णनयनोऽभवत्।
(क) भिक्षुकञ्च तद्भोजितवान्।
(ख) प्रफुल्लचन्द्ररायः गोपबन्धुम् उत्कलमणिः इति उपाधिना सम्मानितवान्।
पञ्चमः पाठः- गीता सुगीता कर्तव्या (गीता और सुगीता का पालन करना आवश्यक है)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत –
(नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखो।)
(क) श्रद्धावान् जनः किं लभते?
हिंदी: श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति क्या प्राप्त करता है?
उत्तरम्: ज्ञानम् (ज्ञान)
(ख) कस्मात् सम्मोहः जायते?
हिंदी: मोह (भ्रम) किससे उत्पन्न होता है?
उत्तरम्: क्रोधात् (क्रोध से)
(ग) सम्मोहात् किं जायते?
हिंदी: भ्रम (मोह) से क्या उत्पन्न होता है?
उत्तरम्: स्मृतिविभ्रमः (स्मृति का भ्रम)
(घ) अर्जुनाय गीतां कः उपदिष्टवान्?
हिंदी: अर्जुन को गीता का उपदेश किसने दिया?
उत्तरम्: श्रीकृष्णः (भगवान श्रीकृष्ण ने)
(ङ) हर्षामर्षभयोद्वेगैः मुक्तः नरः कस्य प्रियः भवति?
हिंदी: जो व्यक्ति हर्ष, क्रोध, भय और चिंता से मुक्त होता है, वह किसको प्रिय होता है?
उत्तरम्: भगवतः (भगवान को)
२. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत –
(पूर्ण वाक्य बनाकर उत्तर लिखें।)
क्रमांक | संस्कृत प्रश्न | हिंदी प्रश्न | संस्कृत उत्तर | हिंदी उत्तर |
---|---|---|---|---|
क | कीदृशं वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते ? | किस प्रकार का वाक्य वाणी का तप कहलाता है? | अनुद्वेगकरं, सत्यं, प्रियहितं च वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते। | ऐसा वाक्य जो किसी को कष्ट न पहुँचाए, सत्य हो, प्रिय और हितकारी हो — वही वाणी का तप कहलाता है। |
ख | कीदृशः जनः स्थितधीः उच्यते ? | किस प्रकार का व्यक्ति स्थिर बुद्धि (स्थितधी) वाला कहा जाता है? | यः दुःखेषु अनुद्विग्नमनाः, सुखेषु विगतस्पृहः, वीतरागभयक्रोधः च भवति, सः स्थितधीः उच्यते। | जो व्यक्ति दुःख में विचलित न हो, सुख में लालच न करे, और राग, भय तथा क्रोध से मुक्त हो — वही स्थितधी कहलाता है। |
ग | जनः कथं प्रणश्यति ? | मनुष्य कैसे नष्ट हो जाता है? | क्रोधात् सम्मोहः, सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः, स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति। | क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति का भ्रम, भ्रम से बुद्धि का नाश और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का विनाश होता है। |
घ | जनः कथम् उत्तमां शान्तिं प्राप्नोति ? | मनुष्य उत्तम शांति कैसे प्राप्त करता है? | श्रद्धावान्, तत्परः, संयतेन्द्रियः जनः ज्ञानं लभते, ततः सः उत्तमां शान्तिं प्राप्नोति। | श्रद्धा और तत्परता से युक्त, इन्द्रियों को संयमित करने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान के द्वारा उत्तम शांति को प्राप्त करता है। |
ङ | उपदेशप्राप्तये त्रयः उपायाः के भवन्ति ? | उपदेश (ज्ञान) प्राप्त करने के तीन उपाय कौन-कौन से हैं? | प्रणिपातः, परिप्रश्नः, सेवया — एते त्रयः उपायाः भवन्ति। | ज्ञान प्राप्त करने के तीन उपाय हैं — प्रणाम करना (विनम्रता), उचित प्रश्न पूछना और सेवा करना। |
३. कोष्ठके दत्तानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत –
(कोष्ठक में दिए गए शब्दों का उपयोग करके वाक्य बनाइए।)
सेवया, स्मृतिविभ्रमः, योगी, वाङ्मयं, स्थितधीः
(क) अनुद्वेगकरं सत्यं प्रियहितं च वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते।
हिंदी: ऐसा वचन जो किसी को कष्ट न पहुँचाए, सत्य हो, प्रिय और हितकारी हो — वही वाचिक तप कहलाता है।
(ख) सततं सन्तुष्टः दृढनिश्चयः च योगी भवति।
हिंदी: जो व्यक्ति हमेशा संतुष्ट और दृढ़ निश्चयी होता है, वही योगी कहलाता है।
(ग) अनुद्विग्नमनाः मुनिः स्थितधीः उच्यते।
हिंदी: जो मुनि अविचलित मन वाला होता है, उसे स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।
(घ) तद् आत्मज्ञानं प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया च विद्धि।
हिंदी: उस आत्मज्ञान को प्रणाम, उचित प्रश्न और सेवा के माध्यम से जानो।
(ङ) सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः भवति।
हिंदी: मोह से स्मृति में भ्रम उत्पन्न होता है।
४. अधोलिखितानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत –
(नीचे लिखे हुए शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाइए।)
(क) उच्यते ————————————————-
(ख) च ——————————————————
(ग) न —————————————————–
(ङ) लब्ध्व ————————————————–
(ङ) कुर्यात् ————————————————–
उत्तरम्:
क्रमांक | संस्कृत पद | वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|---|
क | उच्यते | योगाभ्यासेन शरीरशक्तिः वर्धते इति उच्यते। | कहा जाता है कि योगाभ्यास से शरीर की शक्ति बढ़ती है। |
ख | च | रामः फलानि खादति च जलं पिबति। | राम फल खाता है और जल पीता है। |
ग | न | सः अकर्मण्यः न धावति। | वह आलसी है और दौड़ता नहीं है। |
ङ | लब्ध्वा | प्रयत्नं लब्ध्वा फलप्राप्तिः सुलभा भवति। | प्रयास करने पर सफलता प्राप्त करना आसान हो जाता है। |
च | कुर्यात् | छात्रः गृहकार्यं समये कुर्यात्। | छात्र को समय पर गृहकार्य करना चाहिए। |
५. पाठानुसारं समुचितेन पदेन श्लोकं पूरयत –
(पाठ के अनुसार उचित शब्द से श्लोक को पूरा कीजिए।)
(क) श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः —————————————- ।
(ख) —————————————- चैव वाङ्मयं तप उच्यते ।
(ग) सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा ——————————- ।
(घ) ————————————————- भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
(ङ) तद्विद्धि ————————————— परिप्रश्नेन सेवया ।
उत्तरम्:
(क) श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
हिंदी: जो व्यक्ति श्रद्धालु है और इंद्रियों को वश में रखता है, वही ज्ञान प्राप्त करता है।
सन्दर्भ: श्लोक ४।
(ख) अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च चैव वाङ्मयं तप उच्यते।
हिंदी: ऐसा वचन जो उद्वेग न उत्पन्न करे, सत्य हो, प्रिय और हितकारी हो — वही वाचिक तप कहलाता है।
सन्दर्भ: श्लोक ८।
(ग) सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
हिंदी: जो व्यक्ति हमेशा संतुष्ट, योगी, आत्मा को वश में रखने वाला और दृढ़ निश्चयी हो — वही योगी कहलाता है।
सन्दर्भ: श्लोक ६।
(घ) क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
हिंदी: क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, और मोह से स्मृति का भ्रम होता है।
सन्दर्भ: श्लोक २।
(ङ) तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
हिंदी: इस ज्ञान को प्रणाम, उचित प्रश्न और सेवा के माध्यम से जानो।
सन्दर्भ: श्लोक ३।
६. उदाहरणानुसारं पदानि स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयत –
(उदाहरण के अनुसार शब्दों को स्त्रीलिंग में बदलो।)
उदाहरणम्:
श्रद्धावान् = श्रद्धावती
बुद्धिमान् = बुद्धिमती
(क) गुणवान् = —————————————–
(ख) आयुष्मान् = —————————————–
(ग) क्षमावान् = ——————————————
(घ) ज्ञानवान् = —————————————–
(ङ) श्रीमान् = ——————————————
उत्तर
क्रमांक | पुरुषलिङ्ग | स्त्रीलिङ्ग |
---|---|---|
क | गुणवान् | गुणवती |
ख | आयुष्मान् | आयुष्मती |
ग | क्षमावान् | क्षमावती |
घ | ज्ञानवान् | ज्ञानवती |
ङ | श्रीमान् | श्रीमती |
७. समुचितेन पदेन सह स्तम्भौ मेलयत –
(उचित शब्द के साथ स्तम्भों का मिलान कीजिए।)
उत्तर-
क्रमांक | अ (संस्कृत पद) | इ (मेल खाने वाला पद) | हिंदी अर्थ |
---|---|---|---|
क | सर्वभूतानाम् | सर्वेषां प्राणिनाम् | सभी प्राणियों का |
ख | अनुद्विग्नमनाः | यस्य मनः विचलितं न भवति | जिसका मन कभी विचलित नहीं होता |
ग | स्थितधीः | स्थिरमतिमान् | स्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति |
घ | परिप्रश्नेन | पुनः पुनः प्रश्नकरणेन | बार-बार प्रश्न पूछने के माध्यम से |
ङ | संयतेन्द्रियः | इन्द्रियसंयमी | जिसकी इन्द्रियाँ संयमित हैं |
८: श्रीमद्भगवद्गीतायाः विषये पञ्च वाक्यानि लिखत –
(श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में पाँच वाक्य लिखिए।)
(क) —————————————————–
(ख) —————————————————–
(ग) —————————————————–
(घ) —————————————————–
(ङ) —————————————————–
उत्तर
यहाँ श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में पाँच संक्षिप्त संस्कृत वाक्य और उनके हिंदी अर्थ दिए गए हैं:
- संस्कृत: गीता धर्मस्य ग्रन्थः।
हिंदी: गीता धर्म का ग्रन्थ है। - संस्कृत: गीते ज्ञानं दत्तम्।
हिंदी: गीता में ज्ञान दिया गया है। - संस्कृत: कृष्णः अर्जुनाय उपदेशः कृतवान्।
हिंदी: कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया। - संस्कृत: गीता कर्मणि प्रेरयति।
हिंदी: गीता कर्म के लिए प्रेरित करती है। - संस्कृत: गीते शान्ति लभ्यते।
हिंदी: गीता से शांति प्राप्त होती है।
षष्ठः पाठः- डिजिभारतम् – युगपरिवर्तनम (डिजिटल भारत – युग परिवर्तन)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत –
(पाठ के आधार पर नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखो।)
(क) प्रधानमन्त्रिसङ्ग्रहालये कीदृशी प्रौद्योगिकी प्रयुक्ता अस्ति?
हिंदी: प्रधानमंत्री संग्रहालय में किस प्रकार की तकनीक का उपयोग किया गया है?
उत्तरम् – अद्यतनप्रौद्योगिकीः (अत्याधुनिक तकनीक)
(ख) हॉलोग्राम्-द्वारा कस्य भाषणं दृश्यते?
हिंदी: होलोग्राम के माध्यम से किसका भाषण दिखाई देता है?
उत्तरम् – प्रधानमन्त्रिणः (प्रधानमंत्री का)
(ग) कस्याः प्रभावः दैनन्दिनजीवने दृश्यते?
हिंदी: किसका प्रभाव दैनिक जीवन में देखा जाता है?
उत्तरम् – प्रौद्योगिक्याः (तकनीक का)
(घ) भारत-सर्वकारस्य महत्त्वाकाङ्क्षिणी योजना का अस्ति?
हिंदी: भारत सरकार की प्रमुख और महत्त्वाकांक्षी योजना कौन-सी है?
उत्तरम् – डिजिटलइण्डिया (डिजिटल इंडिया)
(ङ) ‘फास्टॅग्’ इत्यस्य उपयोगेन कस्य सङ्ग्रहणं भवति?
हिंदी: ‘फास्टैग’ के उपयोग से किसका संग्रह किया जाता है?
उत्तरम् – शुल्कस्य (टोल शुल्क का)
२. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत –
(पाठ के आधार पर नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखो।)
(क) प्रधानमन्त्रिसङ्ग्रहालये काः डिजिटल प्रौद्योगिक्यः प्रदर्शिताः सन्ति? (प्रधानमंत्री संग्रहालय में कौन-कौन सी डिजिटल तकनीकें प्रदर्शित की गई हैं?)
उत्तरम् – प्रधानमन्त्रिसङ्ग्रहालये होलोग्राम्, वर्धिता-वास्तविकता (AR), आभासीया-वास्तविकता (VR), कृत्रिमबुद्धिः (AI), संवादयन्त्रं, डिजिटल्-प्रक्षेपणं च इत्यादयः डिजिटल्-प्रौद्योगिक्यः प्रदर्शिताः सन्ति।
(प्रधानमंत्री संग्रहालय में होलोग्राम, संवर्धित वास्तविकता (AR), आभासी वास्तविकता (VR), कृत्रिम बुद्धि (AI), संवाद यंत्र और डिजिटल प्रक्षेपण जैसी अत्याधुनिक तकनीकें प्रदर्शित की गई हैं।)
(ख) जनाः किमर्थं साङ्गणिक-अपराधेन पीडिताः भवन्ति? (लोग साइबर अपराधों से क्यों पीड़ित होते हैं?)
उत्तरम् – जनाः प्रायः लोभात् भयात् वा साङ्गणिक-अपराधेन पीडिताः भवन्ति। (लोग प्रायः लालच या डर के कारण साइबर अपराधों से प्रभावित होते हैं।)
(ग) यशिका ‘डिजि-लॉकर्’ इत्यस्य उपयोगं कथं करोति? (यशिका ‘डिजी-लॉकर’ का उपयोग किस प्रकार करती है?)
उत्तरम् – यशिका ‘डिजि-लॉकर्’ इत्यस्य उपयोगं आधारपत्रस्य विद्यालयीयप्रमाणपत्रस्य च सुरक्षितसंग्रहणाय करोति। (यशिका ‘डिजी-लॉकर’ का उपयोग आधार कार्ड और स्कूल प्रमाणपत्र को सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने के लिए करती है।)
(घ) डिजिटल भारतस्य वित्तीयसमावेशने काः योजनाः सन्ति? (डिजिटल भारत में वित्तीय समावेशन के लिए कौन-कौन सी योजनाएँ हैं?)
उत्तरम् – डिजिटल भारतस्य वित्तीयसमावेशने ‘यूपीआई’, ‘रूपे-कार्ड्’, ‘जनधनयोजना’, ‘ई-रूपी’ इत्यादयः योजनाः सन्ति। (डिजिटल भारत में वित्तीय समावेशन के लिए यूपीआई, रूपे कार्ड, जनधन योजना और ई-रूपी जैसी योजनाएँ उपलब्ध हैं।)
(ङ) डिजिटल-भारते शिक्षायाः क्षेत्रे केषां पटलानाम् उपयोगः करणीयः? (डिजिटल भारत में शिक्षा के क्षेत्र में किन-किन प्लेटफार्मों का उपयोग किया जाना चाहिए?)
उत्तरम् – डिजिटल-भारते शिक्षायाः क्षेत्रे ‘दीक्षा’, ‘स्वयम्’, ‘स्वयं-प्रभा’, ‘ई-पाठशाला’, ‘भारतीय-राष्ट्रीय-डिजिटल्-पुस्तकालयः’, ‘निष्ठा’, ‘पीएम्-ई-विद्या’ इत्यादीनां पटलानाम् उपयोगः करणीयः। (डिजिटल भारत में शिक्षा के क्षेत्र में दीक्षा, स्वयं, स्वयं-प्रभा, ई-पाठशाला, राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय, निष्ठा और पीएम ई-विद्या जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करना चाहिए।)
(च) ग्राम्य-क्षेत्रेषु डिजिटल-सेवानां समस्या कथं निराकर्तुं शक्यते? (ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं की समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?)
उत्तरम् – ग्राम्य-क्षेत्रेषु डिजिटल-सेवानां समस्या अन्तर्जालस्य उत्तरोत्तरविस्तारेण निराकर्तुं शक्यते (ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं की समस्याओं का समाधान इंटरनेट के लगातार विस्तार के माध्यम से किया जा सकता है।)
३. अधः दत्तान् शब्दान् सम्यक् संयोजयत –
(नीचे दी गई शब्द-सूची (शब्दकोश) में से उचित शब्द चुनकर खाली स्थानों को भरिए।)

उत्तरम्-
क्रमः | शब्दः | संयोजनीयः शब्दः | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|---|
क. | होलोग्रामः | प्रधानमन्त्रिणः भाषणस्य त्रैवेम-प्रतिबिम्बरूपेण दर्शनम् | होलोग्राम के माध्यम से प्रधानमंत्री का त्रि-आयामी चित्र वास्तविक रूप में दिखाई देता है। |
ख. | यूपीआय (UPI) | शीघ्रं, सुरक्षितं, सुलभं च डिज़िटल्-धनदेय-प्रत्यर्पणम् | यूपीआई एक त्वरित, सुरक्षित और आसान डिजिटल भुगतान प्रणाली है। |
ग. | डिजिटल-लॉकः | डिज़िटल-प्रमाणपत्रस्य सुरक्षितसंग्रहणाय उपयुक्तः साधनम् | डिजी-लॉकर डिजिटल प्रमाणपत्रों को सुरक्षित रूप से संग्रहित करने का उपयोगी माध्यम है। |
घ. | फास्टैग् (FASTag) | राजमार्गे स्वचालितविधिना मार्गशुल्कस्य शीघ्रं संग्रहणम् | फास्टैग से राजमार्गों पर टोल टैक्स स्वतः और त्वरित रूप से संग्रहित किया जाता है। |
ङ. | वीआर् (VR) | आभासीया-वास्तविकताया: अनुभवाय प्रयुक्तं यन्त्रम् | वीआर (वर्चुअल रियलिटी) एक उपकरण है जो आभासी वास्तविकता का अनुभव कराता है। |
४.
उत्तरम्-
(क) प्रधानमन्त्रिसङ्ग्रहालये हॉलोग्राम्-द्वारा प्रधानमन्त्रिणः भाषणं दृश्यते।
(प्रधानमंत्री संग्रहालय में होलोग्राम के माध्यम से प्रधानमंत्री का भाषण वास्तविक रूप में देखा जा सकता है।)
(ख) डिजिटल्-भारतस्य आर्थिकसमावेशनं सुगमं कर्तुं यूपीआय् प्रणाली अस्ति।
(डिजिटल भारत में आर्थिक समावेशन को सरल और त्वरित बनाने के लिए यूपीआई प्रणाली उपलब्ध है।)
(ग) डिजिटल्-शासनं स्वचालितं पारदर्शकं च सेवां प्रददाति।
( डिजिटल शासन स्वचालित और पारदर्शी सेवाएं प्रदान करता है, जिससे सेवाएं सुगम हो जाती हैं।)
(घ) डिजिटल-भारतस्य शिक्षाक्षेत्रे दीक्षा नाम डिजिटल्-शैक्षिकमञ्चः अस्ति।
( डिजिटल भारत के शिक्षा क्षेत्र में ‘दीक्षा’ नामक डिजिटल शैक्षिक मंच उपलब्ध है।)
(ङ) भारतस्य डिजिटल-परिवर्तनं सर्वाणि जीवन क्षेत्राणि स्पृशति।
( भारत का डिजिटल परिवर्तन जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रभाव डालता है।)
५. अधः अस्मिन् पाठे आगतानां शब्दानाम् आधारेण शब्दजालं प्रदत्तम् अस्ति। अत्र वामतः दक्षिणम् उपरितःअधः च आधारं कृत्वा उदाहरणानुसारं शब्दान् रेखाङ्कयत –
(नीचे दिए गए पाठ में आए शब्दों के आधार पर एक शब्द-जाल तैयार किया गया है। इसमें बाएँ से दाएँ और ऊपर से नीचे शब्दों को खोजकर रेखांकित करें, जैसे उदाहरण में दिखाया गया है।)
उत्तरम्-
कॉलम 1 | कॉलम 2 | कॉलम 3 |
---|---|---|
डिजीलॉकर | फास्टैग | स्वयंप्रभा |
यूपीआई | फास्टग | ज्ञानम् |
दीक्षा | विज्ञानम् | डिजिटल् |
कृत्रिमबुद्धिः | प्रशासनम् | आधारम् |
व्यवस्था | स्वयं | नाम |
शासनम् | प्रौद्योगिकी | वास्तविकता |
शैक्षिकम् |
६. अधोलिखितान् शब्दान् वर्गद्वये विभजत – सङ्गणकसम्बद्धाः, असङ्गणकसम्बद्धाः च –
(नीचे दी गई शब्द-सूची (शब्दकोश) में से उचित शब्द चुनकर खाली स्थानों को भरिए।)
(शब्दाः – अन्तर्जालम्, शिक्षिका, सङ्गणकः, विद्यालयः, ई-पत्रम्, पाठ्यपुस्तकम्, डिजिटल, लेखनी)
उत्तरम्-
सङ्गणकसम्बद्धाः (कम्प्यूटर से संबंधित शब्द) | असङ्गणकसम्बद्धाः (कम्प्यूटर से असंबंधित शब्द) |
---|---|
अन्तर्जालम् (इंटरनेट) | शिक्षिका (शिक्षिका) |
सङ्गणकः (कंप्यूटर) | विद्यालयः (विद्यालय) |
ई-पत्रम् (ई-पत्र) | पाठ्यपुस्तकम् (पाठ्यपुस्तक) |
डिजिटल (डिजिटल) | लेखनी (लेखनी) |
७. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा शुद्धं (✓) अशुद्धं (✗) वा इति चिह्नीकुरुत –
(नीचे लिखे गए वाक्यों को पढ़कर शुद्ध (✓) अथवा अशुद्ध (✗) के रूप में चिह्न लगाइए।)
(क) हॉलोग्राम् कृत्रिमबुद्धेः एकः प्रकारः अस्ति। ✗
हिंदी: हॉलोग्राम कृत्रिम बुद्धि का एक प्रकार है। ✗ (गलत)
(ख) वर्धित-वास्तविकतायाः उपयोगिता ऐतिहासिक-घटनानां प्रत्यक्षानुभवाय। ✓
हिंदी: संवर्धित वास्तविकता का उपयोग ऐतिहासिक घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव कराने के लिए होता है। ✓ (सही)
(ग) डिजिटल – प्रक्षेपण – मानचित्रं भारतस्य विकासयात्रां प्रदर्शयति। ✓
हिंदी: डिजिटल प्रक्षेपण मानचित्र भारत की विकास यात्रा को दर्शाता है। ✓ (सही)
(घ) फ़ास्टॅग् इति राजमार्गेषु स्वचालितविधिना मार्गशुल्कस्य शीघ्रं संग्रहणं करोति। ✓
हिंदी: फास्टैग से राजमार्गों पर टोल शुल्क का स्वतः और त्वरित संग्रह होता है। ✓ (सही)
(ङ) डिजी-लॉकर् इत्यस्य माध्यमेन केवलम् आधार-पत्रं सुरक्षितुं शक्यते। ✗
हिंदी: डिजी-लॉकर से केवल आधार-पत्र ही नहीं, अन्य प्रमाणपत्र भी सुरक्षित रखे जा सकते हैं। ✗ (गलत)
(छ) भारतस्य डिजिटल-परिवर्तनं केवलं शासने प्रभावं करोति, नागरिकजीवने न। ✗
हिंदी: भारत का डिजिटल परिवर्तन केवल शासन में नहीं, नागरिक जीवन में भी प्रभाव डालता है। ✗ (गलत)
(छ) उमङ्ग, माय्-गव्, जेम् इत्यादयः ई-शासन-मञ्चाः सन्ति। ✓
हिंदी: उमंग, माय-गव, जेम आदि ई-शासन मंच हैं। ✓ (सही)
८. अव्यवस्थितान् वर्णान् शब्ददृष्ट्या व्यवस्थितरूपेण लिखत –
(अव्यवस्थित अक्षरों को शब्द की दृष्टि से व्यवस्थित रूप में लिखो)
उदाहरणम् – वेयवित्तीसमानशम् = वित्तीयसमावेशनम्
(क) कसङ्गम्ण = सङ्गणकम् (कंप्यूटर)
हिंदी: कसङ्गम्ण को सही रूप में सङ्गणक कहा जाता है।
(ख) कार्वसरः = सरकारः (सरकार)
हिंदी: कार्वसरः का सही रूप सरकारः है।
(ग) लयः विद्या = शिक्षालयः (विद्यालय)
हिंदी: लयः विद्या का सही रूप शिक्षालयः है।
(घ) जिकडिलॉर = डिजीलॉकरः (डिजीलॉकर)
हिंदी: जिकडिलॉर को सही रूप में डिजीलॉकरः कहा जाता है।
(ङ) शक्तसुम् = पुस्तकः (पुस्तक)
हिंदी: शक्तसुम् का सही रूप पुस्तकः है।
९. अधोलिखितं परिच्छेदं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
(नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए।)
अद्यतने विज्ञानयुगे सर्वे मनुष्याः डिजिटल्-प्रौद्योगिक्याः प्रयोगं कुर्वन्ति। जनाः अन्तर्जालस्य, सचलदूरवाण्याः, सङ्गणकस्य च साहाय्येन शीघ्रं कार्याणि सम्पादयन्ति। विद्यार्थिनः अपि
ई-अधिगम-प्रणालीं स्वीकृत्य ज्ञानं वर्धयन्ति ।
(आधुनिक विज्ञान युग में सभी लोग डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोन और कंप्यूटर की मदद से वे अपने कार्य तेजी से पूरा करते हैं। विद्यार्थी भी ई-लर्निंग प्रणाली का उपयोग करके अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं।)
प्रश्नाः-
(क) अद्यतनं युगं कीदृशम् अस्ति ? (वर्तमान युग कैसा युग है?)
उत्तर – अद्यतनं युगं विज्ञानयुगं अस्ति। (वर्तमान युग विज्ञान का युग है।)
(ख) मानवाः केषां साहाय्येन कार्याणि शीघ्रं कुर्वन्ति ? (मनुष्य किनकी सहायता से कार्यों को जल्दी पूरा करता है?)
उत्तर – मानवाः अन्तर्जालस्य, सचलदूरवाण्याः, सङ्गणकस्य च साहाय्येन कार्याणि शीघ्रं कुर्वन्ति। (मनुष्य इंटरनेट, मोबाइल और कंप्यूटर की मदद से अपने कार्य जल्दी पूरा करता है।)
(ग) ई-अधिगम-प्रणाल्याः प्रयोगं के कुर्वन्ति ? (ई-लर्निंग प्रणाली का उपयोग कौन करता है?)
उत्तर– विद्यार्थिनः ई-अधिगम-प्रणाल्याः प्रयोगं कुर्वन्ति। (विद्यार्थी ई-लर्निंग प्रणाली का लाभ उठाते हैं।)
सप्तमः पाठः- मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा सुंदर (मनोहारी भाषा की सुंदर मणि-मण्डली)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधः प्रदत्तानां प्रश्नानां एकपदेन उत्तरं लिखत।
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दें।)
(क) सुन्दरसुरभाषा कस्य वचनातीता ?
हिंदी: सुंदर और सुगंधित भाषा किसकी वाणी से परे है?
उत्तरम् – पोषणक्षमतायाः (पालन-पोषण की क्षमता से)
(ख) संस्कृतभाषा कुत्र विजयते ?
हिंदी: संस्कृत भाषा कहाँ प्रभावी होती है?
उत्तरम् – धरायाम् (पृथ्वी पर)
(ग) संस्कृतभाषा कस्य आशा ?
हिंदी: संस्कृत भाषा किसकी आशा है?
उत्तरम् – जीवनस्य (जीवन की)
(घ) संस्कृते कति रसाः सन्ति ?
हिंदी: संस्कृत में कितने रस होते हैं?
उत्तरम् – नवरसाः (नौ रस)
(ङ) कस्याः ध्वनिश्रवणेन सुखं वर्धते ?
हिंदी: किसकी ध्वनि सुनकर सुख बढ़ता है?
उत्तरम् – संस्कृतभाषायाः (संस्कृत भाषा की)
२. अधः प्रदत्तानां प्रश्नानां पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत।
(नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दें।)
(क) संस्कृतभाषा केषां जीवनस्य आशा अस्ति ?
हिंदी: संस्कृत भाषा किनके जीवन में आशा का स्रोत है?
उत्तरम् – संस्कृतभाषा वेदव्यासवाल्मीकि-मुनीनां, कालिदासबाणादिकवीनां, पौराणिकसामान्यजनानां च जीवनस्य आशा अस्ति।
हिंदी: संस्कृत भाषा वेदव्यास, वाल्मीकि जैसे मुनियों, कालिदास, बाण आदि कवियों और पौराणिक तथा सामान्य लोगों के जीवन में आशा का स्रोत है।
(ख) केषां विचाराः जनान् अभिप्रेरयन्ति ?
हिंदी: किनके विचार लोगों को प्रेरित करते हैं?
उत्तरम् – वेदविषयवेदान्तविचाराः जनान् अभिप्रेरयन्ति।
हिंदी: वेद और वेदांत संबंधी विचार लोगों को प्रेरित करते हैं।
(ग) कैः रसैः समृद्धा साहित्यपरम्परा विराजते ?
हिंदी: किन रसों से साहित्य परंपरा समृद्ध और प्रभावशाली बनती है?
उत्तरम् – नवरसैः समृद्धा साहित्यपरम्परा विराजते।
हिंदी: नौ रसों से साहित्य परंपरा समृद्ध और शोभायमान बनती है।
(घ) संस्कृतभाषा केषु शास्त्रेषु विहरति ?
हिंदी: संस्कृत भाषा किन शास्त्रों में प्रयुक्त होती है?
उत्तरम् – संस्कृतभाषा वैद्यव्योमशास्त्रादिषु शास्त्रेषु विहरति।
हिंदी: संस्कृत भाषा चिकित्सा, खगोल और अन्य शास्त्रों में उपयोग होती है।
(ङ) संस्कृतभाषायाः कानि कानि सम्बोधनपदानि अत्र प्रयुक्तानि ?
हिंदी: संस्कृत में कौन-कौन से संबोधन शब्द यहाँ प्रयुक्त हुए हैं?
उत्तरम् – अयि, मातः, भगिनि इत्येतानि सम्बोधनपदानि अत्र प्रयुक्तानि।
हिंदी: यहाँ “अयि”, “मातः”, “भगिनि” जैसे संबोधन शब्दों का प्रयोग किया गया है।
३. रेखाङ्कितपदानि आश्रित्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाइए।)
(क) मुनिगणाः “संस्कृतभाषायाः” विकासं कृतवन्तः।
हिंदी: मुनियों ने संस्कृत भाषा की उन्नति की।
प्रश्न: मुनिगणाः कस्य विकासं कृतवन्तः?
हिंदी: मुनियों ने किसकी उन्नति की?
(ख) सामान्यजनानां जीवनं “काव्यैः” प्रभावितम् अस्ति।
हिंदी: साधारण लोगों का जीवन काव्यों से प्रभावित है।
प्रश्न: सामान्यजनानां जीवनं किम् प्रभावितम् अस्ति?
हिंदी: साधारण लोगों का जीवन किन चीज़ों से प्रभावित होता है?
(ग) कवयः अपि “उपादेयानि” काव्यानि रचितवन्तः।
हिंदी: कवियों ने भी उपयोगी काव्य रचे।
प्रश्न: कवयः अपि किम् काव्यानि रचितवन्तः?
हिंदी: कवियों ने किस प्रकार के काव्य रचे?
(घ) संस्कृतभाषा “पृथिव्यां” विहरति।
हिंदी: संस्कृत भाषा पृथ्वी पर विचरण करती है।
प्रश्न: संस्कृतभाषा क्व विहरति?
हिंदी: संस्कृत भाषा कहाँ-कहाँ उपयोग होती है?
(ङ) संस्कृतभाषा “विविधभाषाः” परिपोषयति।
हिंदी: संस्कृत भाषा विभिन्न भाषाओं को पोषित करती है।
प्रश्न: संस्कृतभाषा काश्चन भाषाः परिपोषयति?
हिंदी: संस्कृत भाषा किन-किन भाषाओं को समृद्ध करती है?
(च) वेद-वेदाङ्गादीनि गभीराणि “शास्त्राणि” सन्ति।
हिंदी: वेद और वेदांग आदि गंभीर शास्त्र हैं।
प्रश्न: वेद-वेदाङ्गादीनि गभीराणि किम् सन्ति?
हिंदी: वेद और वेदांग आदि कौन से गंभीर शास्त्र हैं?
४. अधः प्रदत्तानां पदानाम् उदाहरणानुसारं विभक्तिं वचनं च लिखत –
(नीचे दिए गए शब्दों की उदाहरण के अनुसार विभक्ति और वचन लिखो।)
उत्तरम् –
पदम् | विभक्तिः | वचनम् |
---|---|---|
तव (तुम्हारा / तुम्हारी) | षष्ठी (सम्बन्धः) | एकवचनम् |
मञ्जूषा (पेटी / संदूक / ज्ञान का भंडार) | प्रथमा (कर्ता) | एकवचनम् |
संस्कृतिः (संस्कृति) | प्रथमा (कर्ता) | एकवचनम् |
जनानाम् (लोगों का / जनों का) | षष्ठी (सम्बन्धः) | बहुवचनम् |
जीवनस्य (जीवन का) | षष्ठी (सम्बन्धः) | एकवचनम् |
धरायाम् (पृथ्वी पर) | सप्तमी (अधिकरण) | एकवचनम् |
शास्त्रेषु (शास्त्रों में) | सप्तमी (अधिकरण) | बहुवचनम् |
५. अधोलिखितानां पद्यांशानां यथायोग्यं मेलनं कुरुत –
(नीचे लिखे गए पद्यांशों का उचित मेल कीजिए।)

उत्तरम् –
कवर्गः (अर्धपद्य) | खवर्गः (मिलान योग्य अर्धपद्य) | हिंदी अनुवाद (पूर्ण पद्य का) |
---|---|---|
अयि मातस्तव पोषणक्षमता | मम वचनातीता, सुन्दरसुरभाषा | हे माता! तुम्हारी पालन-पोषण की क्षमता मेरी वाणी की सीमा से परे है। |
वेदव्यास – वाल्मीकि -मुनीनां | कालिदासबाणादिकवीनाम् | यह भाषा वेदव्यास, वाल्मीकि जैसे मुनियों और कालिदास-बाण आदि कवियों की है। |
पौराणिक-सामान्यजनानाम् | जीवनस्य आशा, सुन्दरसुरभाषा | पौराणिक और सामान्य लोगों के जीवन में आशा है – यह सुंदर और मधुर भाषा है। |
श्रुतिसुखनिनदे सकलप्रमोदे | स्मृतिहितवरदे सरसविनोदे | यह भाषा वेदों के श्रवण से सुख देती है, स्मृति से कल्याण और रस से आनंद प्रदान करती है। |
वैद्यव्योम-शास्त्रादिविहारा | विजयते धरायाम् | जो चिकित्सा, खगोल और अन्य शास्त्रों में उपयोग होती है – वह पृथ्वी पर विजयी है। |
६. उदाहरणानुसारम् अधः प्रदत्तानां पदानाम् एकपदेन अर्थं लिखत –
(उदाहरण के अनुसार नीचे दिए गए शब्दों के एक-एक शब्द में अर्थ लिखो।)
यथा, देवस्य आलयः = ‘देवालयः
(क) सुराणां भाषा = सुरभाषा → देवताओं की भाषा।
(ख) सुन्दरी सुरभाषा = सुन्दरसुरभाषा → सुंदर और दिव्य भाषा।
(ग) नवरसैः रुचिरा = नवरसरुचिरा → नौ रसों से अलंकृत/सुशोभित भाषा।
(घ) पोषणस्य क्षमता = पोषणक्षमता → पालन-पोषण की शक्ति।
(ङ) मञ्जुला भाषा = मञ्जुलभाषा → मधुर और मनोहर भाषा।
७. पेटिकातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(पेटी से शब्द चुनकर रिक्त स्थानों को भरिए।)
कालिदासबाणादि, आशा, संस्कृतिः, विजयते, मम, वेदविषय, मञ्जुलमञ्जूषा, सकलप्रमोदे
(यथा) मुनिवर–विकसित–कविवर–विलसित– मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा।
(क) अयि मातः तव पोषणक्षमता मम वचनातीता।
भावार्थ – हे माँ! तुम्हारी पालन-पोषण की शक्ति इतनी महान है कि मेरी साधारण वाणी उससे व्यक्त नहीं हो सकती।
(ख) वेदव्यास–वाल्मीकि–मुनीनां कालिदासबाणादि कवीनाम्।
भावार्थ – यह भाषा वेदव्यास, वाल्मीकि जैसे मुनियों और कालिदास, बाण आदि कवियों की है।
(ग) पौराणिक–सामान्य–जनानां जीवनस्य आशा।
भावार्थ – यह पौराणिक और सामान्य लोगों के जीवन में आशा और प्रेरणा का स्रोत है।
(घ) श्रुतिसुखनिनदे सकलप्रमोदे स्मृतिहितवरदे सरसविनोदे।
भावार्थ – यह भाषा सुनने में सुख देती है, सबको प्रसन्न करती है, स्मृति को लाभ पहुँचाती है और रस का आनंद देती है।
(ङ) गति–मति–प्रेरक–काव्य–विशारदे, तव संस्कृतिः एषा सुन्दरसुरभाषा।
भावार्थ – यह भाषा गति और बुद्धि को प्रेरित करती है, काव्यशास्त्र में निपुण है और तेरी संस्कृति को सुंदर और मधुर बनाती है।
(च) नवरस–रुचिरालङ्कृतिधारा वेदविषय–वेदान्तविचारा।
भावार्थ – यह भाषा नव रसों से सज्जित है और वेद-विषय तथा वेदान्त विचारों से समृद्ध है।
(छ) वैद्य–व्योम–शास्त्रादि–विहारा विजयते धरायाम्, सुन्दरसुरभाषा।
भावार्थ – यह सुंदर भाषा चिकित्सा और अंतरिक्ष जैसे शास्त्रों में प्रयोग होती है और पूरी पृथ्वी पर विजयी है।
८. अधोलिखितविकल्पेषु प्रसङ्गानुसारम् अर्थं चिनुत –
(नीचे लिखे गए विकल्पों में से प्रसंग के अनुसार अर्थ चुनो।)
(क) “मञ्जुलमञ्जूषा” इत्यस्य अर्थः कः? (‘मञ्जुलमञ्जूषा’ का क्या अर्थ है?)
उत्तरम् – (iii) मनोहररूपेण संकलिता (मनोहर रूप में संकलित, यानी ज्ञान की सुंदर पेटिका)
(ख) सुन्दरसुरभाषा केषां जीवनस्य आशा उच्यते? (सुंदर-सुगंधित भाषा किसके जीवन में आशा का स्रोत है?)
उत्तरम् – (iii) पौराणिक-सामान्यजनानाम् (पौराणिक और सामान्य लोगों के जीवन में)
(ग) सुन्दरसुरभाषा कुत्र विजयते? (सुंदर-सुगंधित भाषा कहाँ सफल या विजयी है?)
उत्तरम् – (iii) धरायाम् (धरती पर / पृथ्वी पर)
(घ) सुन्दरसुरभाषायां किं नास्ति? (सुंदर-सुगंधित भाषा में क्या नहीं है?)
उत्तरम् – (iv) अशुद्धिः (अशुद्धि नहीं है)
(ङ) कविः सुन्दरसुरभाषां केन पदेन सम्बोधयति? (कवि सुंदर-सुगंधित भाषा को किस शब्द से संबोधित करता है?)
उत्तरम् – (ii) मातः (हे माता!)
अष्टमः पाठः- पश्यत कोणमैशान्यं भारतस्य मनोहरम् (देखो, कौन-सा स्थान भारत का सुंदर है।)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के एक शब्द में उत्तर लिखो।)
(क) अस्माकं देशे कति राज्यानि सन्ति? (हमारे देश में कुल कितने राज्य हैं?)
उत्तरम् – अष्टाविंशतिः (२८)
(ख) प्राचीनेतिहासे का स्वाधीनाः आसन्? (प्राचीन इतिहास में किनको स्वतंत्र कहा जाता था?)
उत्तरम् – सप्तभगिन्यः (सात बहनें – पूर्वोत्तर राज्य)
(ग) केषां समवायः ‘सप्तभगिन्यः’ इति कथ्यते? (किन राज्यों के समूह को ‘सात बहनें’ कहा जाता है?)
उत्तरम् – अष्टराज्यानाम् (आठ राज्यों के समूह को)
(घ) अस्माकं देशे कति केन्द्रशासितप्रदेशाः सन्ति? (हमारे देश में कुल कितने केंद्रशासित प्रदेश हैं?)
उत्तरम् – अष्ट (८)
(ङ) सप्तभगिनी-प्रदेशे कः उद्योगः सर्वप्रमुखः? (सात बहनों के राज्यों में कौन-सा उद्योग सबसे महत्वपूर्ण है?)
उत्तरम् – वंशोद्योगः (बाँस उद्योग)
२. अधोलिखितानां प्रश्नानां पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के पूरे वाक्य में उत्तर लिखो।)
(क) भ्रातृसहित-भगिनीसप्तके कानि राज्यानि सन्ति? (सात बहनों और एक भाई के समूह में कौन-कौन से राज्य आते हैं?)
उत्तरम् – अरुणाचलप्रदेशः, असमः, मणिपुरम्, मिजोरमः, मेघालयः, नागालैण्डं, त्रिपुरा च भगिन्यः; सिक्किमः भ्राता अस्ति। (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा सात बहनें हैं; सिक्किम को भाई कहा जाता है।)
(ख) इमानि राज्यानि सप्तभगिन्यः इति किमर्थं कथ्यन्ते? (इन राज्यों को ‘सात बहनें’ कहने का कारण क्या है?)
उत्तरम् – एतेषां सामाजिक-सांस्कृतिक-साम्यं च भौगोलिकवैशिष्ट्यं च दृष्ट्वा, एतानि सप्तभगिन्यः इति कथ्यन्ते। (इन राज्यों की सामाजिक-सांस्कृतिक समानता और भौगोलिक विशेषताओं के कारण इन्हें ‘सात बहनें’ कहा जाता है।)
(ग) ऐशान्यकोणप्रदेशेषु के निवसन्ति? (उत्तर-पूर्वी राज्यों में किन-किन जनजातियों के लोग रहते हैं?)
उत्तरम् – गारो-खासी-नागा-मिजो-लेप्चा-प्रभृतयः जनजातीयाः ऐशान्यप्रदेशेषु निवसन्ति। ( उत्तर-पूर्वी राज्यों में गारो, खासी, नागा, मिजो, लेप्चा आदि जनजातियों के लोग रहते हैं।)
(घ) पूर्वोत्तरप्रादेशिकाः केषु निष्णाताः सन्ति? (पूर्वोत्तर राज्यों के लोग किन क्षेत्रों में निपुण होते हैं?)
उत्तरम् – पूर्वोत्तरप्रादेशिकाः स्वलीलाकलासु च पर्वपरम्परासु च निष्णाताः सन्ति। (पूर्वोत्तर राज्यों के लोग अपनी लोक-कलाओं और पर्व-परंपराओं में निपुण होते हैं।)
(ङ) वंशवृक्षवस्तूनाम् उपयोगः कुत्र क्रियते? (सात बहन राज्यों में बाँस की वस्तुओं का उपयोग कहाँ किया जाता है?)
उत्तरम् – सप्तभगिनीप्रदेशेषु वंशवृक्षवस्तूनाम् उपयोगः वस्त्राभूषणगृहनिर्माणेषु क्रियते। (सात बहन राज्यों में बाँस से बनी वस्तुओं का उपयोग वस्त्र, आभूषण और घर बनाने में किया जाता है।)
३. अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृति-प्रत्ययविभागं कुरुत – (नीचे दिए गए शब्दों में प्रकृति और प्रत्यय का विभाजन कीजिए।)
यथा – गन्तुम् = गम् + ‘तुमुन्
(क) ज्ञातुम् —————— + ——————
(ख) विश्रुतः —————— + ——————
(ग) अतिरिच्य —————— + ——————
(घ) पठनीयम् —————— + ——————
उत्तरम् –
- गन्तुम् = गम् (प्रकृति) + तुमुन् (प्रत्यय)
(क) ज्ञातुम् = ज्ञा + तुमुन्
(ख) विश्रुतः = श्रु + क्त (वि + उपसर्ग)
विश्रुतः = वि (उपसर्ग) + श्रु (धातु) + क्त (कृदन्त प्रत्यय)
(ग) अतिरिच्य = ऋच् + अतिच (उपसर्ग) + यङ् (प्रत्यय)
अतिरिच्य = अति (उपसर्ग) + ऋच् (धातु) + ल्यप् (कृदन्त प्रत्यय)
(घ) पठनीयम् = पठ् + णीय
४. रेखाङ्कितम् पदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (रेखांकित शब्द के आधार पर प्रश्न बनाइए)
(क) वयं स्वदेशस्य राज्यानां विषये ज्ञातुमिच्छामः । (हम अपने देश के राज्यों के बारे में जानना चाहते हैं।)
प्रश्नः – कस्य देशस्य राज्यानां विषये यूयं ज्ञातुमिच्छथ? (तुम किस देश के राज्यों के बारे में जानना चाहते हो?)
(ख) सप्तभगिन्यः प्राचीनेतिहासे प्रायः स्वाधीनाः एव दृष्टाः । (प्राचीन इतिहास में सात बहनें अधिकतर स्वतंत्र देखी गई थीं।)
प्रश्नः – प्राचीनेतिहासे के स्वाधीनाः का: दृष्टाः? (प्राचीन इतिहास में कौन स्वतंत्र देखे गए?)
(ग) प्रदेशेऽस्मिन् हस्तशिल्पानां बाहुल्यं वर्तते । (इस प्रदेश में हस्तशिल्पों की अधिकता पाई जाती है।)
प्रश्नः – प्रदेशे कस्यानां बाहुल्यं वर्तते? (इस प्रदेश में किसकी अधिकता है?)
(घ) एतानि राज्यानि तु भ्रमणार्थं स्वर्गसदृशानि । (ये राज्य भ्रमण के लिए स्वर्ग के समान हैं।)
प्रश्नः – एतानि राज्यानि तु भ्रमणार्थं किमसदृशानि सन्ति? (ये राज्य भ्रमण के लिए किसके समान हैं?)
५. यथानिर्देशम् उत्तरत –(निर्देश के अनुसार उत्तर दो।)
(क) वाक्यः – महोदये ! मम भगिनी कथयति। अत्र ‘मम’ इति सर्वनामपदं कस्यै प्रयुक्तम् ? (‘मम’ सर्वनाम किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तरम् – ‘मम’ इति सर्वनामपदं ‘भगिन्यै’ प्रयुक्तम्। (‘मम’ सर्वनाम ‘भगिनी’ (मेरी बहन) के लिए प्रयुक्त हुआ है।)
(ख) वाक्यः – सामाजिक-सांस्कृतिकपरिदृश्यानां साम्याद् इमानि उक्तोपाधिना प्रथितानि। अस्मिन् वाक्ये ‘प्रथितानि’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम् ? (इस वाक्य में ‘प्रथितानि’ क्रिया का कर्ता कौन-सा शब्द है?)
उत्तरम् – अत्र ‘इमानि’ इति कर्तृपदम् अस्ति। (इसमें ‘इमानि’ (ये) कर्ता है।)
(ग) एतेषां राज्यानां पुनः सङ्घटनं विहितम्। अत्र ‘सङ्घटनम्’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम् ? (इस वाक्य में ‘सङ्घटनम्’ (संगठन) शब्द की क्रिया क्या है?)
उत्तरम् – ‘विहितम्’ इति क्रियापदं अस्ति। (इसमें ‘विहितम्’ (किया गया) क्रिया है।)
(घ) वाक्यः – अत्र वंशवृक्षाणां प्राचुर्यं विद्यते। अस्मात् वाक्यात् ‘अल्पता’ इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं किम् ? (इस वाक्य में ‘अल्पता’ (कमी) का विलोम शब्द क्या है?)
उत्तरम् – ‘प्राचुर्यम्’ इति विपरीतार्थकं पदं अस्ति। (‘प्राचुर्यम्’ (अधिकता) इसका विलोम शब्द है।)
(ङ) वाक्यः – क्षेत्रपरिमाणैः इमानि लघूनि वर्तन्ते। अस्मिन् वाक्ये ‘सन्ति’ इति क्रियापदस्य समानार्थकं पदं किम् ? (इस वाक्य में ‘सन्ति’ (हैं) क्रिया का समानार्थी कौन-सा शब्द है?)
उत्तरम् – ‘वर्तन्ते’ इति समानार्थकं क्रियापदं अस्ति। (इसमें ‘वर्तन्ते’ शब्द ‘सन्ति’ के समान अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।)
६. अधः शब्दजालं प्रदत्तम् अस्ति । अस्मिन् उपरितः अधः वामतः दक्षिणं चेति आधारं कृत्वा सार्थक शब्दान् रेखाङ्कयत – (नीचे शब्द-जाल दिया गया है। उसमें ऊपर, नीचे, बाएँ और दाएँ आधार लेकर सार्थक शब्दों को रेखांकित कीजिए।)
उत्तरम् –
क्र.सं. | स्तम्भ १ | स्तम्भ २ | स्तम्भ ३ |
---|---|---|---|
1 | जनजातिः | खासी | नागा |
2 | मिजोरमः | संस्कृतिः | पूर्वोत्तरम् |
3 | देशस्य | भगिन्यः | गारो |
4 | प्राकृतिकः | वंशवृक्षः | अरुणाचलः |
5 | मेघालयः | भ्राता | भिन्निः |
७. पट्टिकातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत – (पट्टिका से (शब्द) चुनकर रिक्त स्थानों को भरिए।)
सिक्किमः = सिक्किम , पूर्वोत्तरराज्यानि = पूर्वोत्तर राज्य , अष्टाविंशतिः = अट्ठाईस (२८) , स्वदेशस्य राज्यानाम् = अपने देश के राज्यों के , अरुणाचलप्रदेशः = अरुणाचल प्रदेश , असमः = असम ,
मणिपुरं = मणिपुर, मिजोरमः = मिजोरम , मेघालयः = मेघालय ,नागालैण्डं = नागालैण्ड , त्रिपुरा = त्रिपुरा, जनजातिः = जनजाति , प्राचुर्यम् = प्रचुरता / अधिकता
(क) छात्राः अद्य स्वदेशस्य राज्यानाम् विषये ज्ञातुमिच्छन्ति। (छात्र आज अपने देश के राज्यों के बारे में जानना चाहते हैं।)
(ख) अस्माकं देशे अष्टाविंशतिः राज्यानि तथा अष्ट केन्द्रशासितप्रदेशाः सन्ति। (हमारे देश में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं।)
(ग) सप्तभगिन्यः एकः भ्राता च इति पूर्वोत्तरराज्यानि कथ्यन्ते। (‘सात बहनें और एक भाई’ कहे जाने वाले राज्य पूर्वोत्तर राज्य हैं। )
(घ) सप्तभगिन्यः इत्युक्तानि राज्यानि – अरुणाचलप्रदेशः, असमः, मणिपुरं, मिजोरमः, मेघालयः, नागालैण्डं, त्रिपुरा च। (सात बहनों के राज्य हैं: अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा।)
(ङ) प्रदेशेऽस्मिन् जनजातिः बाहुल्यम् अस्ति। (इस प्रदेश में जनजातियों की बहुतायत है।)
(छ) पूर्वोत्तरराज्येषु वंशवृक्षाणां प्राचुर्यम् विद्यते। (पूर्वोत्तर राज्यों में बाँस के वृक्षों की प्रचुरता पाई जाती है।)
८. भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत – (भिन्न प्रकृति वाला शब्द चुनो)
(क) गच्छति, पठति, धावति, अहसत्, क्रीडति
भिन्नपदं – अहसत्
हिंदी अर्थ – ‘अहसत्’ भूतकाल (लङ् लकार) में है, जबकि बाकी शब्द वर्तमानकाल (लट् लकार) में हैं।
(ख) छात्रः, सेवकः, शिक्षकः, लेखिका, क्रीडकः
भिन्नपदं – लेखिका
हिंदी अर्थ – ‘लेखिका’ स्त्रीलिंग शब्द है, शेष सभी पुल्लिंग शब्द हैं।
(ग) पत्रम्, मित्रम्, पुष्पम्, आम्रः, फलम्
भिन्नपदं – आम्रः
हिंदी अर्थ – ‘आम्रः’ पुल्लिंग (आम का वृक्ष) है, बाकी सब नपुंसकलिंग शब्द हैं।
(घ) व्याघ्रः, भल्लूकः, गजः, कपोतः, शाखा, वृषभः, सिंहः
भिन्नपदं – शाखा
हिंदी अर्थ – ‘शाखा’ निर्जीव (पेड़ की टहनी) है, शेष सभी जीवित प्राणी (जानवर) हैं।
(ङ) पृथिवी, वसुन्धरा, धरित्री, यानम्, वसुधा
भिन्नपदं – यानम्
हिंदी अर्थ – ‘यानम्’ कृत्रिम (मानव निर्मित) वस्तु है, शेष सभी पृथ्वी के नाम हैं।
९. विशेष्य- विशेषणानाम् उचितं मेलनं कुरुत –
उत्तर–
विशेषण – पदानि (विशेषण) | विशेष्य – पदानि (विशेष्य) | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|
अयम् | प्रदेशः | यह प्रदेश |
संस्कृतिविशिष्टायाम् | भारतभूमौ | संस्कृति-विशिष्ट भारतभूमि में |
महत्त्वाधायिनी | संस्कृतिः | महत्व प्रदान करने वाली संस्कृति |
प्राचीने | इतिहासे | प्राचीन इतिहास में |
एकः | समवायः | एक समूह |
नवमः पाठः- कोऽरुक् ? कोऽरुक् ? कोऽरुक् ? (कौन रुका? कौन रुका? कौन रुका?)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितान् प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरत | (नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए।)
(क) शुकरूपं कः धृतवान्? (तोते का रूप किसने धारण किया?)
उत्तरम् – धन्वन्तरिः (भगवान धन्वंतरि ने।)
(ख) धन्वन्तरिः (शुकः) कुत्र उपविश्य ध्वनिम् अकरोत्? (धन्वंतरि (तोता) कहाँ बैठकर आवाज़ करने लगा?)
उत्तरम् – वृक्षे (वृक्ष पर।)
(ग) अन्ते शुकः कस्य आश्रमस्य समीपं गतवान्? (अंत में वह तोता किसके आश्रम के पास गया?)
उत्तरम् – वाग्भटस्य (वाग्भट के आश्रम के पास।)
(घ) ऋतवः कति सन्ति? (ऋतुएँ कितनी होती हैं?)
उत्तरम् – षट् (छह ऋतुएँ।)
(ङ) वाग्भटः शुकस्य रहस्यं केभ्यः उक्तवान्? (वाग्भट ने तोते का रहस्य किसे बताया?)
उत्तरम् – शिष्येभ्यः (शिष्यों को।)
२. पट्टिकातः उचितानि पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत – (सूची से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।)
चरकस्य, कुटीरसमीपं, भारतवर्षे, आयुर्वेदज्ञानेन, अतिमात्रं
(क) भारतवर्षे जनाः कथं निरामयाः भवन्ति? (भारतवर्ष में लोग कैसे निरोग रहते हैं?)
(ख) अन्ते सः वैद्यस्य वाग्भटस्य कुटीरसमीपं गतवान्। (अंत में वह वैद्य वाग्भट के आश्रम के पास गया।)
(ग) तव उत्कृष्टेन आयुर्वेदज्ञानेन अहम् अतीव सन्तुष्टः अस्मि। (तुम्हारे उत्कृष्ट आयुर्वेद ज्ञान से मैं अत्यंत संतुष्ट हूँ।)
(घ) महर्षेः चरकस्य नाम भवन्तः श्रुतवन्तः स्युः। (तुमने महर्षि चरक का नाम अवश्य सुना होगा।)
(ङ) लघुद्रव्याणि अतिमात्रं सेवनेन हानिकराणि जायन्ते। (हल्के पदार्थ भी यदि अधिक मात्रा में खाए जाएँ तो हानिकारक हो जाते हैं।)
३. अधोलिखितानां प्रश्नानां पूर्णवाक्येन उत्तराणि लिखत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के पूर्ण वाक्यों में उत्तर लिखिए।)
(क) मधुरां वाणीं श्रुत्वा चिकित्सानिरतः वाग्भटः किम् अकरोत्? (मधुर आवाज सुनकर वैद्य वाग्भट ने क्या किया?)
उत्तरम् – मधुरां वाणीं श्रुत्वा वाग्भटः प्राङ्गणम् आगत्य सर्वासु दिक्षु अपश्यत्। (मधुर आवाज़ सुनकर वाग्भट आँगन में आए और सभी दिशाओं में देखने लगे।)
(ख) वाग्भटः झटिति किम् अकरोत्? (वाग्भट ने तुरंत क्या किया?)
उत्तरम् – वाग्भटः झटिति तस्मै विहगाय मधुराणि फलानि समर्पितवान्। (वाग्भट ने तुरंत उस पक्षी को मीठे फल अर्पित किए।)
(ग) छात्राः पुनः जिज्ञासया आचार्यं किम् अपृच्छन्? (छात्रों ने फिर जिज्ञासा से आचार्य से क्या पूछा?)
उत्तरम् – छात्राः पुनः आचार्यं अपृच्छन् – “हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक् इति – एतेषां कः आशयः?” (छात्रों ने फिर आचार्य से पूछा – “हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक् — इनका क्या अभिप्राय है?”)
(घ) भगवान् धन्वन्तरिः अस्माकं कृते संक्षेपेण किं प्रदत्तवान्? (भगवान धन्वंतरि ने हमारे लिए संक्षेप में क्या दिया?)
उत्तरम् – भगवान् धन्वन्तरिः अस्माकं कृते स्वास्थ्यरक्षणाय सूत्ररूपेण सन्देशम् दत्तवान्। (भगवान धन्वंतरि ने हमारे लिए स्वास्थ्य रक्षा हेतु संक्षेप में सूत्र रूप में संदेश प्रदान किया।)
(ङ) ऋषयः नित्यं कां प्रार्थनां कुर्वन्ति? (ऋषिगण प्रतिदिन कौन-सी प्रार्थना करते हैं?)
उत्तरम् – ऋषयः नित्यं “सर्वे भवन्तु सुखिनः…” इत्यादि प्रार्थनां कुर्वन्ति। (ऋषिगण प्रतिदिन “सभी सुखी हों…” जैसी प्रार्थना करते हैं।)
४. पाठात् यथोचितानि विशेषणपदानि विशेष्यपदानि वा चिन्त्वा रिक्तस्थानानि पूरयत – (पाठ से उचित विशेषण शब्द या विशेष्य शब्द सोचकर रिक्त स्थान भरें।)
विशेषणम् (विशेषण) | विशेष्यम् (जिसकी विशेषता है) | हिंदी अर्थ | ||
---|---|---|---|---|
विविधनाम् | व्याधीनाम् | विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ | ||
मनोहरम् | शुकरूपम् | सुंदर तोते का रूप | ||
विशाले | प्राङ्गणे | विशाल आँगन में | ||
चिकित्सानिरतः | वाग्भटः | चिकित्सा में तल्लीन वाग्भट | ||
मधुराणि | फलानि | मीठे फल | ||
सुप्रसिद्धस्य | वैद्यस्य | प्रसिद्ध वैद्य का | ||
महर्षेः | चरकस्य | महर्षि चरक का | ||
आयुर्वेदविद् | वैद्याः | आयुर्वेद जानने वाले वैद्य | ||
प्रख्यातस्य | वृक्षे | प्रसिद्ध वृक्ष पर | ||
मधुरा | वाणीम् | मधुर वाणी | ||
लौकिकः | उत्तरम् | सामान्य उत्तर | ||
समुचितम् | खगः | उचित पक्षी | ||
आयुर्वेदज्ञस्य | शिष्याः | आयुर्वेद संबंधी शिक्षा | ||
सात्त्विकम् | भोजनम् | सात्त्विक आहार |
५. पाठं पठित्वा अधोलिखितपट्टिकातः पदानि चित्वा उचितसञ्चिकायां पूरयत – (पाठ पढ़कर नीचे दी गई सूची से शब्दों को चुनकर उचित स्थान पर भरें।)
लौकिकः, व्याधीनाम्, देवः, वृक्षे, त्रीणि, उत्तमस्य, वाणीम्, विस्मितः,
मधुरया, प्रश्नान्, पूज्यः, खगः, विशाले, शुकम्, वाग्भटः
विशेषणपदानि (Adjectives) | विशेष्यपदानि (Nouns) | हिंदी अर्थ |
---|---|---|
लौकिकः (सांसारिक) | व्याधीनाम् (बीमारियों का / रोगों का) | सांसारिक बीमारियाँ / रोग |
मधुरया (मधुर / मीठी) | वाणीम् (वाणी / भाषा / शब्द) | मधुर वाणी |
विस्मितः (चकित / आश्चर्यचकित) | वाग्भटः (वाग्भट – विद्वान वैद्य) | चकित वाग्भट |
उत्तमस्य (श्रेष्ठ का / उत्तम का) | देवः (भगवान / देवता) | श्रेष्ठ देव |
पूज्यः (पूजनीय / सम्माननीय) | शुकम् (तोता) | पूजनीय तोता |
विशाले (विशाल / बड़ा) | वृक्षे (वृक्ष में / पेड़ में) | विशाल वृक्ष में |
त्रीणि (तीन) | प्रश्नान् (प्रश्न / सवाल) | तीन प्रश्न |
खगः (पक्षी) | (सामान्य पक्षी / विहंग) | पक्षी / विहंग |
६. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा तेन सम्बद्धं श्लोकं पाठात् चित्वा लिखत (नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़कर, उससे संबंधित श्लोक पाठ से चुनकर लिखो।)
(क) अस्माभिः नित्यं व्यायामः, स्नानं, दन्तधावनं, बुभुक्षायाञ्च भोजनं कर्तव्यम्। (हमें प्रतिदिन व्यायाम, स्नान, दाँतों की सफाई और भूख लगने पर भोजन करना चाहिए।)
उत्तरम् :
अस्माभिः नित्यकाले व्यायामः, स्नानम्, दन्तधावनं च कर्तव्यं, बुभुक्षायां भोजनं च आवश्यकं। (हमें प्रतिदिन व्यायाम, स्नान, दाँतों की सफाई करनी चाहिए और केवल भूख लगने पर भोजन करना चाहिए।)
(ख) अस्माभिः हितकरः आहारः सेसे वनीयः येन विकाराणां शमनं स्वास्थ्यस्य च रक्षणं भवेत्। (हमें ऐसा लाभकारी भोजन करना चाहिए जिसरोग दूर हों और स्वास्थ्य सुरक्षित रहे।)
उत्तरम् :
येन विकाराणां शमनं स्वास्थ्यस्य च रक्षणं भवति, तादृशः हितकरः आहारः अस्माभिः सेवनीयः। (हमें वही आहार ग्रहण करना चाहिए जिससे रोगों का नाश हो और स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।)
(ग) ऋतोः अनुसारं भोजनेन बलस्य वर्णस्य च अभिवृद्धिः भवति। (ऋतु के अनुसार भोजन करने से बल और रंग (तेज) की वृद्धि होती है।)
उत्तरम् :
ऋतूनां अनुसारं भोजनं कुर्वन् जनः बलवर्णयोः अभिवृद्धिं प्राप्नोति। (जो व्यक्ति ऋतु के अनुसार भोजन करता है, उसमें बल और वर्ण (तेज) की वृद्धि होती है।)
दशमः पाठः- सन्निमित्ते वरं त्यागः (क-भागः)- (सुख-सुविधा मिलने पर श्रेष्ठ वस्तु का त्याग )
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठम् आधृत्य उदाहरणानुगुणं लिखत ‘आम्’ अथवा ‘न’ – (पाठ के आधार पर उदाहरण देखकर ‘हाँ’ या ‘न’ लिखिए।)
संस्कृत प्रश्न | हिंदी अनुवाद | उत्तर |
---|---|---|
(क) किं वीरवरः राजपुत्रः आसीत्? | क्या वीरवर सचमुच एक राजपुत्र था? | आम् |
(ख) “किं ते वर्तनम्”? इति किं शूद्रकः अपृच्छत्? | क्या शूद्रक ने पूछा – “तुम्हारा वेतन कितना है?” | आम् |
(ग) किं वीरवरं राज्ञः समीपे दौवारिकः अनयत् ? | क्या द्वारपाल वीरवर को राजा के पास ले गया? | आम् |
(घ) किं राजा शूद्रकः राजपुत्रं वीरवरं साक्षात् दृष्ट्वा एव वृत्तिम् अयच्छत् ? | क्या राजा शूद्रक ने वीरवर को देखकर ही वेतन दे दिया? | न |
(ङ) किं वीरवरः स्ववेतनस्य चतुर्थं भागम् एव पत्न्यै यच्छति स्म ? | क्या वीरवर अपनी पत्नी को केवल वेतन का चौथाई भाग देता था? | न |
(च) किं करुण – रोदन-ध्वनिं राजा श्रुतवान्? | क्या राजा ने करुणामय रोने की आवाज सुनी? | आम् |
(छ) किं करुणरोदनध्वनिः दिवसे श्रुतः आसीत् ? | क्या रोने की आवाज दिन के समय सुनी गई थी? | न |
(ज) किं राजलक्ष्म्या उक्तः उपायः अतीव दुःसाध्यः आसीत् ? | क्या राजलक्ष्मी द्वारा बताया गया उपाय बहुत कठिन था? | आम् |
(झ) किं भगवती सर्वमङ्गला उपायं संसूच्य शीघ्रमेव अदृश्या अभवत्? | क्या देवी सर्वमंगल उपाय बताकर तुरंत अदृश्य हो गई? | आम् |
२. अधोलिखितान् प्रश्नान् पूर्णवाक्येन उत्तरत –(नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर पूरे वाक्य में लिखिए।)
(क) शूद्रकः कीदृशः राजा आसीत्? (शूद्रक कैसा राजा था?)
उत्तरम् – शूद्रकः महापराक्रमी, नानाशास्त्रवित्, पूतचरित्रः च राजा आसीत्। (शूद्रक एक महान पराक्रमी, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता और पवित्र चरित्र वाला राजा था।)
(ख) वीरवरः कस्य समीपं गन्तुम् इच्छति स्म? (वीरवर किसके पास जाना चाहता था?)
उत्तरम् – वीरवरः राज्ञः समीपं गन्तुम् इच्छति स्म। (वीरवर राजा के पास जाना चाहता था।)
(ग) राज्ञः शूद्रकस्य ‘का ते सामग्री ?” इति प्रश्नस्य उत्तरं वीरवरः किम् अयच्छत् ? (राजा शूद्रक द्वारा पूछे गए “तुम्हारी सामग्री क्या है?” इस प्रश्न का उत्तर वीरवर ने क्या दिया?)
उत्तरम् – वीरवरः उक्तवान् – “इमौ बाहू, एषः खड्गः च मम सामग्री।” (वीरवर ने उत्तर दिया – “मेरी सामग्री ये दोनों भुजाएँ और यह तलवार है।”)
(घ) वीरवरः स्वगृहं कदा गच्छति स्म ? (वीरवर अपने घर कब जाता था?)
उत्तरम् – वीरवरः यदा राजा आदेशं ददाति तदा एव स्वगृहं गच्छति स्म। (वीरवर केवल तब ही घर जाता था जब राजा आदेश देता था।)
(ङ) वीरवरः स्ववेतनस्य अर्धं केभ्यः यच्छति स्म ? (वीरवर अपने वेतन का आधा हिस्सा किसे देता था?)
उत्तरम् – वीरवरः स्ववेतनस्य अर्धं देवेभ्यः यच्छति स्म। (वीरवर अपने वेतन का आधा भाग देवताओं को अर्पित करता था।)
(च) राजलक्ष्मीः कुत्र सुखेन अवसत् ? (राजलक्ष्मी कहाँ सुखपूर्वक रहती थी?)
उत्तरम् – राजलक्ष्मीः शूद्रकस्य भुजच्छायायां सुमहता सुखेन अवसत्। (राजलक्ष्मी राजा शूद्रक की भुजाओं की छाया में बड़े सुख से निवास करती थी।)
(छ) राजलक्ष्म्याः दुःखस्य कारणं श्रुत्वा बद्धाञ्जलिः वीरवरः किम् अवदत् ? (राजलक्ष्मी का दुख सुनकर हाथ जोड़कर वीरवर ने क्या कहा?)
उत्तरम् – वीरवरः उक्तवान् – “भगवति ! अस्त्यत्र कश्चिदुपायः येन भगवत्याः पुनः चिरवासः भवेत्?” (वीरवर ने कहा – “हे माता! क्या कोई उपाय है जिससे आप यहाँ फिर से लंबे समय तक रह सकें?”)
३. उदाहरणानुसारं निम्नलिखितानि वाक्यानि अन्वयरूपेण लिखत –(उदाहरण के अनुसार वाक्यों को सही क्रम में लिखो और उनका हिंदी अर्थ दो।)
(क) आसीत् शोभावती नाम काचन नगरी ।
अन्वयः – काचित् नगरी शोभावती नाम आसीत्।
हिंदी – एक नगरी थी जिसका नाम शोभावती था।
(ख) प्रतिदिनं सुवर्णशतचतुष्टयं देव !
अन्वयः – हे देव! प्रतिदिनं सुवर्णशतानां चतुष्टयं भवति।
हिंदी – हे देव! प्रतिदिन चार सौ स्वर्ण मुद्राएँ होती हैं।
(ग) … स्वरूपमस्य वेतनार्थिनो राजपुत्रस्य, किमुपपन्नमेतत् वेतनं न वेति।
अन्वयः – हे देव! प्रथमं दिनचतुष्टयस्य वेतनस्य अर्पणेन, अयम् वेतनार्थी राजपुत्रः उपपन्नम् अस्ति वा न इति स्वरूपं अवगम्यताम्।
हिंदी – हे देव! पहले चार दिन का वेतन देकर इस राजपुत्र की योग्यता जानी जाए कि यह वेतन उचित है या नहीं।
(घ) क्रन्दनमनुसर राजपुत्र !
अन्वयः – हे राजपुत्र! त्वं क्रन्दनस्य अनुसरणं कुरु।
हिंदी – हे राजपुत्र! तुम रोने की आवाज़ का पीछा करो।
(ङ) … ताम्बूलदानेन नियोजितोऽसौ राजपुत्रो वीरवरो नरपतिना ।
अन्वयः – अथ नरपतिना मन्त्रिणां वचनात् ताम्बूलदाने नियोजितः असौ राजपुत्रः वीरवरः।
हिंदी – तब राजा ने मंत्रियों की सलाह मानकर उस राजपुत्र वीरवर को पान देने का कार्य सौंपा।
(च) नैष गन्तुमर्हति राजपुत्र एकाकी सूचिभेद्ये तिमिरेऽस्मिन् ।
अन्वयः – अस्मिन् सूचिभेद्ये तिमिरे एकाकी राजपुत्रः गन्तुं न अर्हति।
हिंदी – इस गहन अंधकार में राजपुत्र को अकेले नहीं जाना चाहिए।
(छ) भगवति! अस्त्यत्र कश्चिदुपायो…
अन्वयः – हे भगवति! अत्र कश्चित् उपायः अस्ति, येन भगवत्या पुनः अत्र चिरकालं वासः भवति, च स्वामी सुचिरं जीवति।
हिंदी – हे माता! क्या कोई उपाय है जिससे आप यहाँ लंबे समय तक रह सकें और राजा भी दीर्घायु हों?
(ज) तदा पुनर्जीविष्यति राजा शूद्रको वर्षाणां शतम् ।
अन्वयः – तदा राजा शूद्रकः वर्षाणां शतं पुनः जीविष्यति।
हिंदी – तब राजा शूद्रक सौ वर्षों तक फिर जीवित रहेगा।
४. उदाहरणानुगुणं पाठगतानि पदानि अधिकृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत (उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्दों को ध्यान में रखते हुए रिक्त स्थान भरिए।)
यथा – (1) अथैकदा = अथ + एकदा
(2) वृत्त्यर्थम् = वृत्तिः + अर्थम्
(3) कस्मादपि = कस्मात् + अपि
(4) कोऽपि = कः + अपि
(5) राजपुत्रोऽस्मि = राजपुत्रः + अस्मि
(6) यथेष्टम् = यथा + इष्टम्
(7) वेतनार्पणेन = वेतन + अर्पणेन
(8) तदालोक्य = तत् + आलोक्य
(9) ततोऽसौ = ततः + असौ
(10) वर्तनार्थिनो = वर्तन + अर्थिनः
(11) तदवशिष्टं = तत् + अवशिष्टम्
(12) राजदर्शनादनन्तरं = राजदर्शनात् + अनन्तरम्
(13) वेत्ति = वेत् + इति
(14) राजलक्ष्मीरुवाच = राजलक्ष्मीः + उवाच
(15) चार्द्धं = च + अर्धम्
(16) बहिर्नगरादालोकिता = बाहिः + नगरात् + आलोकिता
(17) कापि = का + अपि
(18) प्रत्युवाच = प्रति + उवाच
(19) राजलक्ष्मीरस्मि = राजलक्ष्मीः + अस्मि
(20) स्थास्यामीति = स्थास्यामि + इति
(21) भुजच्छायायां = भुजः + छायायाम्
(22) अस्त्यत्र = अस्ति + अत्र
(23) कश्चिदुपायः = कश्चित् + उपायः
५. अधोलिखितेषु वाक्येषु रक्तवर्णीयपदानि केभ्यः प्रयुक्तानि इति उदाहरणानुगुणं लिखत –
(नीचे दिए गए वाक्यों में लाल रंग के शब्द किस विभक्ति में प्रयुक्त हुए हैं, यह उदाहरण के अनुसार लिखिए।)
यथा – अहं “भवतः” सेवायां नियोजितः । → राज्ञे (चतुर्थी विभक्ति – ‘के लिए’)
(क) ततः “असौ” तद्रोदनस्वरानुसरणक्रमेण प्रचलितः ।
उत्तरम् – अस्मात् (पञ्चमी विभक्ति)
हिंदी अनुवाद – तब वह (असौ) उस रोने की ध्वनि का पीछा करते हुए चल पड़ा।
‘असौ’ शब्द ‘अस्मात्’ (उससे) का रूप है, जो पञ्चमी विभक्ति (अपादान कारक) में है।
(ख) तत् “अहम्” अपि गच्छामि पृष्ठतोऽस्य ।
उत्तरम् – अहम् (प्रथमा विभक्ति)
हिंदी अनुवाद – तब मैं भी उसके पीछे-पीछे जाऊँगा।
‘अहम्’ शब्द कर्ता को बताता है, इसलिए यह प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) है।
(ग) चिरम् “एतस्य” भुजच्छायायां सुमहता सुखेन निवसामि ।
उत्तरम् – एतस्य (षष्ठी विभक्ति)
हिंदी अनुवाद – इस (राजा के) भुजाओं की छाया में मैं बहुत समय से सुखपूर्वक रह रही हूँ।
‘एतस्य’ ‘एषः’ (यह) का षष्ठी रूप है, जो सम्बन्ध कारक है और अर्थ देता है ‘इसका’।
(घ) “सा” चातीव दुःसाध्या ।
उत्तरम् – सा (प्रथमा विभक्ति)
हिंदी अनुवाद – वह (प्रवृत्ति) बहुत कठिन है।
‘सा’ स्त्रीलिंग शब्द है और कर्ता के रूप में प्रथमा विभक्ति में प्रयुक्त है।
(ङ) किं “ते” वर्तनम् ?
उत्तरम् – ते (चतुर्थी विभक्ति)
हिंदी अनुवाद – तुम्हें क्या वेतन है?
‘ते’ ‘त्वम्’ (तुम) का चतुर्थी रूप है, जिसका अर्थ है ‘तुझे/तेरे लिए’।
६. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा तेन सम्बद्धं श्लोकं पाठात् चित्वा लिखत –
(नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़कर उनसे संबंधित श्लोक पाठ से देखकर लिखो।)
(क) राजलक्ष्मीः वदति यत् यदि वीरवरः स्वस्य सर्वप्रियं वस्तु त्यजति तदा सा पुनः शूद्रकस्य समीपे स्थास्यति।
उत्तर:
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थमिदं शरीरम्॥
हिंदी – परोपकार के लिए ही वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ जल बहाती हैं, गायें दूध देती हैं और यह शरीर भी परोपकार के लिए बना है।
(ख) राजा शूद्रकः प्रथमं वीरवरस्य वृत्त्यर्थं प्रार्थनां न स्वीकरोति।
उत्तर:
कार्ये कर्मणि निर्वृत्ते यो बहून्यपि साधयेत्।
पूर्वकार्याविरोधेन स कार्यं कर्तुमर्हति॥
हिंदी – जो व्यक्ति एक कार्य पूरा करने के बाद भी अन्य अनेक कार्य करता है, और पहले किए गए कार्यों में बाधा न डालते हुए उन्हें करता है, वही कार्य करने योग्य होता है।
(ग) एकदा कोऽपि वीरवरः नाम राजपुत्रः वृत्तिं प्राप्तुं राज्ञः शूद्रकस्य समीपं गच्छति।
उत्तर:
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥
हिंदी – यहाँ मनुष्य को कर्म करते हुए ही सौ वर्ष तक जीना चाहिए। ऐसा करने पर और कोई उपाय नहीं है, तथा कर्म मनुष्य को बाँधता नहीं है।
(घ) सः तस्य कर्तव्यनिष्ठां साक्षात् पश्यति।
उत्तर:
यथा छायातपौ नित्यं सुसंबद्धौ परस्परम्।
एवं कर्म च कर्ता च संश्लिष्टावितरेतरम्॥
हिंदी – जैसे छाया और धूप हमेशा साथ रहते हैं, उसी प्रकार कर्म और कर्ता भी एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।
(ङ) राजा मन्त्रिणां मन्त्रणया वीरवराय वृत्तिं यच्छति।
उत्तर:
कार्ये कर्मणि निर्वृत्ते यो बहून्यपि साधयेत्।
पूर्वकार्याविरोधेन स कार्यं कर्तुमर्हति॥
हिंदी – जो व्यक्ति किसी कार्य को पूरा करने के बाद भी कई अन्य कार्य करता है और पहले कार्यों में बाधा न डाले, वही वास्तव में नया कार्य करने के योग्य है।
७. अधोलिखितानां वाक्यानां पदच्छेदं कुरुत –
(नीचे लिखे वाक्यों का शब्द-विभाजन (पदों में अलग-अलग) कीजिए।)
यथा –
अथैकदा वीरवरनामा राजपुत्रः वृत्त्यर्थं कस्मादपि देशाद् राजद्वारमुपागच्छत्।
पदच्छेदः – अथ एकदा वीरवरनामा राजपुत्रः वृत्त्यर्थं कस्मात् अपि देशात् राजद्वारम् उपागच्छत्।
(क) वृत्त्यर्थमागतो राजपुत्रोऽस्मि ।
पदच्छेदः – वृत्त्यर्थम् आगतः राजपुत्रः अस्मि।
हिंदी – मैं नौकरी (जीविका) के लिए आया हुआ राजकुमार हूँ।
(ख) अथैकदा कृष्णचतुर्दश्यामर्धरात्रे स राजा श्रुतवान् करुणरोदनध्वनिं कञ्चन ।
पदच्छेदः – अथ एकदा कृष्णचतुर्दश्याम् अर्धरात्रे सः राजा श्रुतवान् करुणरोदनध्वनिम् कञ्चन।
हिंदी – एक बार कृष्ण चतुर्दशी की अर्धरात्रि में उस राजा ने किसी करुण क्रंदन की ध्वनि सुनी।
(ग) तदहमपि गच्छामि पृष्ठतोऽस्य निरूपयामि च किमेतदिति ।
पदच्छेदः – तत् अहम् अपि गच्छामि पृष्ठतः अस्य निरूपयामि च किम् एतत् इति।
हिंदी – तब मैं भी उसके पीछे जाता हूँ और देखता हूँ कि यह क्या है।
(घ) अस्त्यत्र कश्चिदुपायो येन भगवत्याः पुनरिह चिरवासो भवति।
पदच्छेदः – अस्ति अत्र कश्चित् उपायः येन भगवत्याः पुनः इह चिरवासः भवति।
हिंदी – यहाँ एक ऐसा उपाय है, जिससे देवी (आप) फिर से यहाँ लंबे समय तक रह सकती हैं।
(ङ) एकैवात्र प्रवृत्तिः सा चातीव दुःसाध्या ।
पदच्छेदः – एका एव अत्र प्रवृत्तिः सा च अतीव दुःसाध्या।
हिंदी – यहाँ केवल एक ही प्रवृत्ति है और वह अत्यंत कठिन है।
एकादशः पाठः- सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः) (अनुकूल अवसर पर श्रेष्ठता का त्याग )
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. निम्नलिखितेषु वाक्येषु रक्तवर्णीयानि स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (निम्नलिखित वाक्यों में से लाल रंग के मोटे शब्दों को ध्यान में रखकर प्रश्न बनाइए।)
(क) वीरवरो पत्नीं पुत्रं दुहितरञ्च प्राबोधयत्। (वीरवर ने पत्नी, पुत्री और पुत्र को जगाया।)
प्रश्न (संस्कृत): कः पत्नीं पुत्रं दुहितरञ्च प्राबोधयत्? (किसने पत्नी, पुत्री और पुत्र को जगाया?)
(ख) ततस्ते सर्वे सर्वमङ्गलाया आयतनं गताः। (इसके बाद वे सभी सर्वमंगल देवी के मंदिर गए।)
प्रश्न (संस्कृत): ततस्ते सर्वे जनाः कुत्र गताः? (इसके बाद वे सब लोग कहाँ गए?)
(ग) वीरवरः वर्तनस्य निस्तारं पुत्रोत्सर्गेण अकरोत्। (वीरवर ने अपने कर्तव्य की पूर्ति पुत्र के त्याग से की।)
प्रश्न (संस्कृत): वीरवरः वर्तनस्य निस्तारं केन अकरोत्? (वीरवर ने किसके त्याग से कर्तव्य की पूर्ति की?)
(घ) राजा स्वप्रासादं प्राविशत्। (राजा अपने महल के भीतर प्रवेश किया।)
प्रश्न (संस्कृत): राजा कुत्र प्राविशत्? (राजा कहाँ प्रवेश किया?)
(ङ) महीपतिः वीरवराय समग्रकर्णाटप्रदेशम् अयच्छत्। (महीपति ने वीरवर को सम्पूर्ण कर्नाट प्रदेश प्रदान किया।)
प्रश्न (संस्कृत): महीपतिः कस्य समग्रकर्णाटप्रदेशं अयच्छत्? (महीपति ने पूरा कर्नाट प्रदेश किसे दिया?)
२. अधोलिखितान् प्रश्नान् उत्तरत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।)
(क) वीरवरः किम् अवर्णयत् ? (वीरवर ने किसका वर्णन किया?)
उत्तरम् – वीरवरः अखिलराजलक्ष्मीसंवादं अवर्णयत्। (वीरवर ने सम्पूर्ण राजलक्ष्मी संवाद का वर्णन किया।)
(ख) प्राज्ञः धनानि जीवितञ्च केभ्यः उत्सृजेत् ? (बुद्धिमान मनुष्य धन और जीवन किसके लिए त्याग करता है?)
उत्तरम् – प्राज्ञः परार्थे धनानि जीवितञ्च उत्सृजेत्। (बुद्धिमान व्यक्ति परोपकार के लिए धन और जीवन का त्याग करता है।)
(ग) केन सदृशः लोके न भूतो न भविष्यति ? (इस संसार में किसके समान न पहले कोई हुआ और न आगे होगा?)
उत्तरम् – वीरवरेण सदृशः लोके न भूतो न भविष्यति। (वीरवर के समान संसार में न पहले कोई था और न आगे होगा।)
(घ) का अदृश्या अभवत्? (कौन अदृश्य हो गई?)
उत्तरम् – भगवती सर्वमङ्गला अदृश्या अभवत्। (देवी सर्वमंगल अदृश्य हो गई।)
(ङ) सपरिवारः वीरवरः कुत्र गतवान्? (वीरवर अपने परिवार सहित कहाँ गया?)
उत्तरम् – सपरिवारः वीरवरः स्वगृहं गतवान्। (वीरवर अपने परिवार सहित अपने घर चला गया।)
३. अधोलिखितेषु वाक्येषु रक्तवर्णीयपदानि केभ्यः प्रयुक्तानि इति उदाहरणानुगुणं लिखत –
(नीचे दिए गए वाक्यों में लाल रंग से दर्शाए गए शब्दों का किसके द्वारा प्रयोग किया गया है, इसे उदाहरण के अनुसार लिखिए।)
(क) भगवति ! न “मे” प्रयोजनं राज्येन जीवितेन वा ।
उत्तरम् – राज्ञः
हिंदी अनुवाद –
हे माता! मुझे न राज्य से और न ही जीवन से कोई प्रयोजन है।
(यहाँ “मे” = मम = मेरा; प्रयुक्तः = राजा/राज्ञः)
(ख) वत्स ! अनेन “ते” सत्त्वोत्कर्षेण भृत्यवात्सल्येन च परं प्रीतास्मि ।
उत्तरम् – राज्ञः
हिंदी अनुवाद –
बेटा! तुम्हारी इस श्रेष्ठ शक्ति और सेवकों के प्रति स्नेह से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ।
(यहाँ “ते” = तव = तुम्हारे; प्रयुक्तः = राजा/राज्ञः)
(ग) धन्याहं “यस्या” ईदृशो जनको भ्राता च ।
उत्तरम् – वीरवत्या
हिंदी अनुवाद –
मैं भाग्यशाली हूँ, जिसकी ऐसे पिता और भाई हैं।
(यहाँ “यस्या” = जिसकी; प्रयुक्तः = वीरवती, पुत्री के लिए)
(घ) तदेतत्परित्यक्तेन “मम” राज्येनापि किं प्रयोजनम् !
उत्तरम् – राज्ञः
हिंदी अनुवाद –
जब यह सब त्याग दिया है तो मेरे राज्य का भी क्या प्रयोजन है?
(यहाँ “मम” = मेरा; प्रयुक्तः = राजा/राज्ञः)
(ङ) “अयम्” अपि सपरिवारो जीवतु ।
उत्तरम् – वीरवरः
हिंदी अनुवाद –
यह राजपुत्र भी अपने परिवार सहित जीवित रहे।
(यहाँ “अयम्” = यह; प्रयुक्तः = वीरवरः)
४. उदाहरणानुसारं निम्नलिखितानि वाक्यानि अन्वयरूपेण लिखत –
(नीचे दिए गए वाक्यों को उदाहरण के अनुसार अन्वय रूप में लिखिए।)
यथा –
कृतो मया गृहीतस्वामिवर्तनस्य निस्तारो स्वपुत्रोत्सर्गेण ।
👉 गृहीतस्वामिवर्तनस्य निस्तारो मया स्वपुत्रोत्सर्गेण कृतः।
(क) नेदानीं राज्यभङ्गस्ते भविष्यति। (अब तुम्हारा राज्य नष्ट नहीं होगा।)
👉 अन्वय: ते राज्यभङ्गः अद्य भविष्यति न। (तुम्हारा राज्य अब नष्ट नहीं होगा।)
(ख) तेन पातितं स्वशिरः स्वकरस्थखड्गेन। (उसने अपने हाथ में धरी तलवार से अपना सिर काट लिया।)
👉 अन्वय: तेन स्वकरस्थखड्गेन स्वशिरः पातितम्। (उसने अपने सिर को अपने हाथ की तलवार से काटा।)
(ग) तदा ममायुःशेषेणापि जीवतु राजपुत्रो वीरवरः सह पुत्रेण पत्न्या दुहित्रा च। (तब मेरे शेष जीवन से भी राजकुमार वीरवर अपने पुत्र, पत्नी और पुत्री के साथ जीवित रहे।)
👉 अन्वय: तदा राजपुत्रः वीरवरः मम आयुःशेषेणापि सह पुत्रेण पत्न्या च दुहित्रा जीवतु। (तब राजकुमार वीरवर मेरे शेष जीवन से भी अपने पुत्र, पत्नी और पुत्री सहित जीवित रहे।)
(घ) तत्क्षणादेव देवी गताऽदर्शनम्। (उसी क्षण देवी अदृश्य हो गई।)
👉 अन्वय: देवी तत्क्षणादेव गताऽदर्शनम्। (देवी उसी क्षण अदृश्य हो गई।)
(ङ) महीपतिस्तस्मै प्रायच्छत् समग्रकर्णाटप्रदेशं राजपुत्राय वीरवराय। (राजा ने राजकुमार वीरवर को पूरा कर्नाट प्रदेश प्रदान किया।)
👉 अन्वय: महीपतिः तस्मै राजपुत्राय वीरवराय समग्रकर्णाटप्रदेशम् प्रायच्छत्। (राजा ने राजकुमार वीरवर को सम्पूर्ण कर्नाट प्रदेश दिया।)
(च) जायन्ते च म्रियन्ते च मादृशाः क्षुद्रजन्तवः। (मेरे जैसे छोटे जीव जन्म लेते और मृत्यु को प्राप्त होते हैं।)
👉 अन्वय: मादृशाः क्षुद्रजन्तवः जायन्ते च म्रियन्ते च। (मेरे जैसे छोटे जीव जन्म लेते हैं और मरते भी हैं।)
५. उदाहरणानुगुणम् अधोलिखितानां पदानां पदच्छेदं कुरुत –
(नीचे दिए गए शब्दों का पद-विभाजन (शब्दों को अलग-अलग करके) उदाहरण के अनुसार कीजिए।)
यथा –
यद्येवमस्मत्कुलोचितम् = यदि-एवम्-अस्मत्-कुलोचितम्
सत्त्वोत्कर्षेण = सत्त्व–उत्कर्षेण
(क) गृहीतस्वामिवर्तनस्य = गृहीत-स्वामि-वर्तनस्य
हिंदी अनुवाद: स्वामी द्वारा दिया गया वेतन
(ख) निस्तारोपायः = निस्तार-उपायः
हिंदी अनुवाद: मुक्ति पाने का उपाय
(ग) गृह्यतामेष = गृह्यताम्-एष
हिंदी अनुवाद: इसे स्वीकार करो
(घ) स्वपुत्रोत्सर्गेण = स्व-पुत्र-उत्सर्गेण
हिंदी अनुवाद: अपने पुत्र के बलिदान से
(ङ) स्वकरस्थखड्गेन = स्व-कर-स्थ-खड्गेन
हिंदी अनुवाद: अपने हाथ में रखी तलवार से
(च) तदेतत्परित्यक्तेन = तत्-एतत्-परित्यक्तेन
हिंदी अनुवाद: इस सबको त्यागने वाले के द्वारा
(छ) स्वशिरश्छेदनार्थमुत्क्षिप्तः = स्व-शिरः-छेदन-अर्थम्-उत्क्षिप्तः
हिंदी अनुवाद: अपना सिर काटने के लिए उठाया गया
(ज) मद्दर्शनाददृश्यताम् = मत्-दर्शनात्-दृश्यताम्
हिंदी अनुवाद: मेरे दर्शन से अदृश्य हो जाना
(झ) तत्क्षणादेव = तत्-क्षणात्-एव
हिंदी अनुवाद: उसी समय तुरंत
(ञ) लब्धजीवितः = लब्ध-जीवितः
हिंदी अनुवाद: जिसे जीवन प्राप्त हुआ
६. (क) उदाहरणानुसार पाठगत पदों से रिक्त स्थानों की पूर्ति सन्धियुक्त शब्दों द्वारा करें –
संधि | सन्धियुक्त शब्द | हिंदी अर्थ |
---|---|---|
तत् + श्रुत्वा | तच्छ्रुत्वा | उसे सुन लेने पर |
दुहितरम् + च | दुहितरञ्च | पुत्री भी |
धन्यः + अहम् | धन्याहम् | मैं सचमुच धन्य हूँ |
जीवितम् + च + एव | जीवितमेव | केवल जीवन ही |
विलम्बः + तात | विलम्बस्तात | देर क्यों कर रहे हो, पिताजी? |
कः + अधुना | कोऽधुना | अब कौन है? |
न + आचरितव्यम् | नाचरितव्यम् | जिसका आचरण नहीं होना चाहिए |
धन्या + अहम् | धन्याहम् | मैं भाग्यशाली हूँ |
निस्तारः + उपायः | निस्तारोपायः | छुटकारा पाने का उपाय |
वीरवरः + अवदत् | वीरवरोऽवदत् | वीरवर ने कहा |
ततः + असौ | ततोऽसौ | तब वह व्यक्ति |
ततः + ते | ततस्ते | तब वे सब |
(ख) निम्नलिखितपदानां सन्धिच्छेदं कुरुत – (नीचे दिए गए शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए।)
शूद्रकोऽपि
➤ शूद्रकः + अपि (शूद्रक भी था)
पुनर्भूपालेन
➤ पुनः + भूपालेन (फिर राजा द्वारा)
महीपतिस्तस्मै
➤ महीपतिः + तस्मै (राजा ने उसी को)
प्रायच्छत्
➤ प्रा + अयच्छत् (प्रदान किया / सौंपा)
नृपतिरपि
➤ नृपतिः + अपि (राजा भी)
सर्वेषामदृश्य
➤ सर्वेषाम् + अदृश्य (सभी के लिए अदृश्य)
वार्ताऽन्या
➤ वार्ता + अन्या (कोई दूसरी सूचना / समाचार)
राज्यभङ्गस्ते
➤ राज्यभङ्गः + ते (तेरा राज्य नष्ट नहीं होगा)
गतिर्गन्तव्या
➤ गतिः + गन्तव्या (गति प्राप्त की जानी चाहिए)
इत्युक्त्वा
➤ इति + उक्त्वा (ऐसा कहकर)
नेदानीं
➤ न + इदानीं (अब नहीं)
प्रीतास्मि
➤ प्रीता + अस्मि (मैं प्रसन्न हूँ)
७. अधोलिखितानि कथनानि कथायाः घटनानुसारं लिखत – (नीचे दिए गए कथनों को कहानी की घटनाओं के क्रम में लिखिए।)
(क) सर्वं दृष्ट्वा राजा शद्रकः अ ू पि सर्वस्वसमर्पणार्थं सिद्धः अभवत्। (ख) पितः वा ु र्तां श्त रु्वा शक्तिधरः प्रसन्नतया स्वस्य समर्पणार्थं सिद्धः अभवत्। (ग) प्रातः राजा वीरवरम अप ् च्छत ृ ‘ ् ह्यः रात्रौ किम अभवत ् ’? ् (घ) वीरवरो गहृ गत ं ्वा पत्नीं पत्ुरं पत्ुरीञ्च प्राबोधयत, स् र्वां च वार्ताम अक ् थयत्। (ङ) वीरवरेण उक्तम – स ् ्वामिन्! न कापि वार्ता । सा नारी अदृश्या अभवत्। (च) भगवती प्रसन्ना अभवत्। भगवत्याः कृपया सर्वे जीवितवन्तः । (छ) वीरवरः परिवारेण सह सर्वस्वसमर्पणम अकरोत ् ्।
उत्तरम्-
(घ) वीरवरो गृहं गत्वा पत्नीं पुत्रं पुत्रीञ्च प्राबोधयत्, सर्वां च वार्ताम् अकथयत्।
हिंदी – वीरवर घर जाकर अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्री को जगाता है और पूरा समाचार सुनाता है।
(ख) पितुः वार्तां श्रुत्वा शक्तिधरः प्रसन्नतया स्वस्य समर्पणार्थं सिद्धः अभवत्।
हिंदी – पिता की बात सुनकर शक्तिधर हर्षपूर्वक स्वयं को समर्पित करने के लिए तैयार हो गया।
(छ) वीरवरः परिवारेण सह सर्वस्वसमर्पणम् अकरोत्।
हिंदी – वीरवर ने अपने परिवार सहित सब कुछ अर्पित कर दिया।
(क) सर्वं दृष्ट्वा राजा शूद्रकः अपि सर्वस्वसमर्पणार्थं सिद्धः अभवत्।
हिंदी – यह सब देखकर राजा शूद्रक भी पूर्ण समर्पण के लिए प्रस्तुत हो गया।
(च) भगवती प्रसन्ना अभवत्। भगवत्याः कृपया सर्वे जीवितवन्तः।
हिंदी – भगवती प्रसन्न हुई और उनकी कृपा से सब जीवित रहे।
(ग) प्रातः राजा वीरवरम् अपृच्छत् ‘ह्यः रात्रौ किम् अभवत्’?
हिंदी – सुबह राजा ने वीरवर से पूछा – “बीती रात क्या हुआ था?”
(ङ) वीरवरेण उक्तम् – स्वामिन् ! न कापि वार्ता । सा नारी अदृश्या अभवत्।
हिंदी – वीरवर ने उत्तर दिया – “स्वामी! कोई विशेष घटना नहीं हुई, वह स्त्री अदृश्य हो गई।”
द्वादशः पाठः – सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते (सही वर्णों के प्रयोग से (या शुद्ध उच्चारण द्वारा) व्यक्ति ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है।)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठे विद्यमानानां श्लोकानाम् उच्चारणं स्मरणं लेखनं च कुरुत ।
(पाठ में दिए गए श्लोकों का उच्चारण करें, उन्हें कंठस्थ करें और लिखकर अभ्यास करें।)
२. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तराणि लिखत – (नीचे दिए प्रश्नों के एक-शब्द वाले उत्तर लिखिए।)
(क) पाठकाः केषां सम्यक् प्रयोगं कुर्युः ? (पाठक किसका ठीक प्रकार से प्रयोग करें?)
उत्तरम्: वर्णानाम्। (वर्णों का।)
(ख) किम् अवश्यमेव पठनीयम् ? (कौन-सी वस्तु अवश्य पढ़नी चाहिए?)
उत्तरम्: व्याकरणम्। (व्याकरण।)
(ग) ब्रह्मलोके केन सम्मानं भवति ? (ब्रह्मलोक में किससे आदर मिलता है?)
उत्तरम्: सम्यग्वर्णप्रयोगेण। (वर्णों के शुद्ध प्रयोग से।)
(घ) अधमाः पाठकाः कति भवन्ति ? (निम्न कोटि के पाठक कितने होते हैं?)
उत्तरम्: षट्। (छह।)
(ङ) धैर्यं केषां गुणः ? (धैर्य किसका स्वभाविक गुण है?)
उत्तरम्: पाठकानाम्। (पाठकों का।)
३. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् पूर्णवाक्येन उत्तराणि लिखत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर पूरे वाक्य में लिखिए।)
(क) व्याघ्री दंष्ट्राभ्यां कान् नयति ? (व्याघ्री (मादा बाघ) अपने दाँतों से किसे उठाकर ले जाती है?)
उत्तरम्: व्याघ्री दंष्ट्राभ्यां पुत्रान् नयति। (व्याघ्री अपने दाँतों से अपने शावकों को ले जाती है।)
(ख) वर्णाः कथं प्रयोक्तव्याः ? (अक्षरों का प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए?)
उत्तरम्: वर्णाः स्पष्टतया न च पीडयित्वा प्रयोक्तव्याः। (अक्षरों का उच्चारण साफ़-साफ़ और बिना दबाव के करना चाहिए।)
(ग) पाठकानां षट्-गुणाः के भवन्ति ? (पाठकों के कौन-कौन से छह गुण बताए गए हैं?)
उत्तरम्: पाठकानां षट् गुणाः – माधुर्यम्, अक्षरव्यक्तिः, पदच्छेदः, सुस्वरः, धैर्यम्, लयसमर्थता च भवन्ति। (पाठकों के छह गुण होते हैं – मधुरता, अक्षरों का सही उच्चारण, शब्दों का ठीक विभाजन, सुंदर स्वर, धैर्य और लय का ज्ञान।)
(घ) के अधमाः पाठकाः भवन्ति ? (किस प्रकार के पाठक अधम कहलाते हैं?)
उत्तरम्: गीती, शीघ्री, शिरःकम्पी, लिखितपाठकः, अनर्थज्ञः, अल्पकण्ठश्च अधमाः पाठकाः भवन्ति। (जो गाने की तरह पढ़ते हैं, बहुत तेज़ पढ़ते हैं, सिर हिलाकर पढ़ते हैं, केवल लिखकर पढ़ते हैं, अर्थ नहीं समझते और धीमी आवाज़ में पढ़ते हैं – वे अधम पाठक होते हैं।)
(ङ) ‘स्वजनः’ ‘श्वजनः’ च इत्यनयोः अर्थदृष्ट्या कः भेदः ? (‘स्वजन’ और ‘श्वजन’ शब्दों में अर्थ के आधार पर क्या अंतर है?)
उत्तरम्: ‘स्वजनः’ इत्यस्य अर्थः बान्धवः, ‘श्वजनः’ इत्यस्य अर्थः शुनकः अस्ति। (‘स्वजन’ का अर्थ है संबंधी/अपना जन, और ‘श्वजन’ का अर्थ है कुत्ता।)
(च) ‘सकलं’ ‘शकलं’ च इत्यनयोः अर्थदृष्ट्या कः भेदः ? (‘सकलं’ और ‘शकलं’ शब्दों में अर्थ के आधार पर क्या भिन्नता है?)
उत्तरम्: ‘सकलं’ इत्यस्य अर्थः सम्पूर्णम्, ‘शकलं’ इत्यस्य अर्थः खण्डः अस्ति। (‘सकलं’ का अर्थ है सम्पूर्ण (पूरा), और ‘शकलं’ का अर्थ है टुकड़ा या खंड।)
४. अधोलिखितानि लक्षणानि पाठकस्य गुणाः वा दोषाः वा इति विभजत – (नीचे दिए गए लक्षण यह बताइए कि वे पाठक के गुण हैं या दोष।)
अक्षरव्यक्तिः, शीघ्री, लिखितपाठकः, लयसमर्थम्, अनर्थः, अल्पकण्ठः,
माधुर्यम्, गीती, पदच्छेदः, शिरःकम्पी, अनर्थज्ञः, धैर्यम्, सुस्वरः
गुणाः (सुपाठक के गुण) | दोषाः (कुपाठक के दोष) |
---|---|
अक्षरव्यक्तिः (स्पष्ट रूप से उच्चारण करने वाला) | शीघ्री (बहुत जल्दी-जल्दी पढ़ने वाला) |
लयसमर्थम् (लय को समझकर पढ़ने वाला) | लिखितपाठकः (केवल लिखकर ही पढ़ने वाला) |
माधुर्यम् (मीठी वाणी से पढ़ने वाला) | अनर्थः (अर्थ का ध्यान न रखने वाला) |
पदच्छेदः (शब्दों को ठीक प्रकार से अलग करने वाला) | अल्पकण्ठः (बहुत धीमी आवाज़ में पढ़ने वाला) |
धैर्यम् (धैर्यपूर्वक पढ़ने वाला) | गीती (गाने की तरह पढ़ने वाला) |
सुस्वरः (सुंदर स्वर में पढ़ने वाला) | शिरःकम्पी (सिर हिलाते हुए पढ़ने वाला) |
— | अनर्थज्ञः (पाठ का अर्थ न जानने वाला) |
५. श्लोकानुसारं रिक्तस्थानानि उचितैः शब्दैः पूरयत – (श्लोक के आधार पर रिक्त स्थानों को सही शब्दों से भरें।)
(क) भीता पतनभेदाभ्यां तद्वद् वर्णान् प्रयोजयेत्। (श्लोक २ के अनुसार, जिस प्रकार बाघिन अपने बच्चों को सावधानी और डर के साथ उठाती है, वैसे ही वर्णों का प्रयोग करना चाहिए।)
(ख) माधुर्यमक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठका गुणाः। (श्लोक ४ के अनुसार, मधुरता, स्पष्ट उच्चारण, शब्द-विभाजन, सुस्वर, धैर्य और लय की समझ — ये पाठक के छह गुण हैं।)
(ग) गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा लिखितपाठकः। (श्लोक ५ के अनुसार, जो गाने की तरह पढ़ता है, बहुत तेज़ पढ़ता है, सिर हिलाता है और लिखकर पढ़ता है — वह दोषयुक्त पाठक कहलाता है।)
(घ) एवं वर्णाः प्रयोक्तव्या नाव्यक्ता न च पीडिताः। (श्लोक ३ के अनुसार, वर्णों का प्रयोग न तो अस्पष्ट और न ही दबाकर करना चाहिए।)
(ङ) स्वजनः श्वजनो माभूत् सकलं शकलं सकृत् शकृत्। (श्लोक १ के अनुसार, यदि उच्चारण गलत हो जाए तो ‘स्वजन’ ‘श्वजन’ बन जाता है और अर्थ पूरी तरह बदल जाता है।)
६. अधोलिखितानि वाक्यानि सत्यम् वा असत्यम् वा इति लिखत – (नीचे दिए गए वाक्यों के बारे में लिखो कि वे सत्य हैं या असत्य।)
यथा– पदच्छेदः पाठकानां गुणः अस्ति। सत्यम् / असत्यम्
सत्यम् (श्लोक ४ में पदच्छेद को अच्छे पाठक का गुण बताया गया है।)
(क) गानसहितपठनं पाठकानां दोषः भवति।
सत्यम् (श्लोक ५ में ‘गीती’ को अधम पाठक का दोष कहा गया है।)
(ख) माधुर्यं नाम अक्षराणाम् उच्चारणे स्पष्टता अस्ति।
असत्यम् (श्लोक ४ के अनुसार माधुर्य का अर्थ है मधुरता, जबकि स्पष्ट उच्चारण को अक्षरव्यक्तिः कहा गया है।)
(ग) शकृत् नाम एकवारम् इति अर्थः अस्ति।
असत्यम् (श्लोक १ में ‘शकृत्’ का अर्थ मल है, जबकि ‘सकृत्’ का अर्थ एक बार है। यह गलत उच्चारण का उदाहरण है।)
(घ) अव्यक्ताः वर्णाः प्रयोक्तव्याः भवन्ति।
असत्यम् (श्लोक ३ के अनुसार, अस्पष्ट वर्णों का प्रयोग वर्जित है।)
(ङ) व्याघ्री यथा पुत्रान् हरति तथा वर्णान् प्रयोजयेत्।
सत्यम् (श्लोक २ में बाघिन द्वारा शावकों को सावधानी से उठाने की तुलना वर्णों के सही प्रयोग से की गई है।)
त्रयोदशः पाठः – वर्णोच्चारण-शिक्षा १(अक्षरों का उच्चारण-अभ्यास १)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन द्विपदेन वा उत्तरत – (नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या दो शब्दों में दीजिए।)
(क) उरसि किं तन्त्रं भवति? (छाती में कौन-सी यंत्रणा / प्रणाली पाई जाती है?)
उत्तर – वायुबलतन्त्रम्। (वायु-बल प्रणाली।)
(ख) नाभिप्रदेशे स्थिताः मांसपेश्यः किं नोदयन्ति? (नाभि के पास स्थित मांसपेशियाँ किसे गति देती हैं?)
उत्तर – श्वासप्रवृत्तिम्। (श्वसन की प्रक्रिया।)
(ग) आस्यस्य आभ्यन्तरे वार्णानाम् उत्पत्त्यर्थं द्वितीयं तत्त्वं किम् अस्ति? (मुख के भीतर वर्णों की उत्पत्ति के लिए दूसरा तत्त्व कौन-सा है?)
उत्तर – करणम्। (करण अर्थात उच्चारण का साधन।)
(घ) आस्ये कति स्थानानि सन्ति? (मुख के भीतर कितने उच्चारण-स्थान होते हैं?)
उत्तर – षट् स्थानानि। (छह स्थान।)
(ङ) स्थानस्य कार्यनिदर्शनार्थं किं समुचितम् उदाहरणम् अस्ति? (उच्चारण-स्थान के कार्य को समझाने के लिए कौन-सा उचित उदाहरण है?)
उत्तर – मुरली। (बाँसुरी।)
(च) करणानि मुरल्याः कस्य भागम् इव व्यवहरन्ति? (बाँसुरी में करण किस भाग की तरह कार्य करते हैं?)
उत्तर – अङ्गुलीभागस्य। (अंगुलियों के भाग की तरह।)
२. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत। – (नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर पूरे वाक्य में लिखिए।)
(क) करणं किं भवति? (करण किसे कहते हैं?)
उत्तरम् – करणं तदङ्गं भवति, यत् वर्णस्य उच्चारणसमये स्थानं स्पृशति वा समीपं याति। (करण वह अंग होता है, जो वर्ण का उच्चारण करते समय स्थान को छूता है या उसके निकट पहुँचता है।)
(ख) उरः श्वासकोशस्थितं वायुं कुत्र निःसारयति? (छाती (उरः) फेफड़ों में भरी वायु को कहाँ बाहर निकालती है?)
उत्तरम् – उरः श्वासकोशे स्थितं वायुं ऊर्ध्वं निःसारयति। (छाती फेफड़ों में स्थित वायु को ऊपर की ओर निकालती है।)
(ग) मुरल्याः अङ्गुलिच्छिद्राणि कीदृशं व्यवहरन्ति? (बाँसुरी के छिद्र किस प्रकार काम करते हैं?)
उत्तरम् – मुरल्याः अङ्गुलिच्छिद्राणि आस्यस्य स्थानानि इव व्यवहरन्ति। (बाँसुरी के छिद्र मुख के उच्चारण-स्थान जैसे कार्य करते हैं।)
(घ) केषां वर्णानाम् उच्चारणे जिह्वा प्रायः निष्क्रिया भवति? (किन वर्णों के उच्चारण में जीभ लगभग निष्क्रिय रहती है?)
उत्तरम् – कण्ठ्यानां, ओष्ठ्यानां, नासिक्यानां च वर्णानाम् उच्चारणे जिह्वा प्रायः निष्क्रिया भवति। (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों के उच्चारण में जीभ लगभग निष्क्रिय रहती है।)
(ङ) तालव्यानां, मूर्धन्यानां, दन्त्यानां च वर्णानाम् उच्चारणार्थं सामान्यं करणं किम् अस्ति? (तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य वर्णों के उच्चारण में समान करण कौन है?)
उत्तरम् – तालव्यानां, मूर्धन्यानां, दन्त्यानां च वर्णानाम् उच्चारणार्थं सामान्यं करणं जिह्वा भवति। (तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य वर्णों के उच्चारण में समान करण “जीभ” है।)
(च) कण्ठ्यानां, ओष्ठ्यानां, नासिक्यानां च वर्णानाम् उच्चारणार्थं स्थानस्य करणस्य च मध्ये किं भवति? (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों के उच्चारण में स्थान और करण के बीच क्या संबंध होता है?)
उत्तरम् – कण्ठ्यानां, ओष्ठ्यानां, नासिक्यानां च वर्णानाम् उच्चारणे स्थानमेव करणं भवति। (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों के उच्चारण में स्थान ही करण का कार्य करता है।)
३. अधोलिखितेषु वाक्येषु आम् / न इति लिखित्वा उचितभावं सूचयत – (नीचे दिए गए वाक्यों में उचित भाव बताने के लिए ‘हाँ’ या ‘नहीं’ लिखिए।)
(क) श्वासकोशस्थितः वायुः ऊर्ध्वं चरन् पूर्वम् आस्यं प्राप्नोति।
हिन्दी – फेफड़ों में भरी हुई वायु ऊपर उठते समय सबसे पहले मुँह तक पहुँचती है। उत्तरम् – न
(ख) सर्वप्रथमं नाभि-प्रदेशे स्थिताः मांसपेश्याः कण्ठं नोदयन्ति।
हिन्दी – सबसे पहले नाभि क्षेत्र की मांसपेशियाँ कंठ को ऊपर उठाती हैं। उत्तरम् – न
(ग) आस्यस्य आभ्यन्तरे वर्णानाम् उत्पत्त्यर्थम् आभ्यन्तर-प्रयत्नः आवश्यकम् अस्ति।
हिन्दी – मुँह के भीतर वर्णों की उत्पत्ति के लिए आंतरिक प्रयत्न ज़रूरी होता है।
उत्तरम् – आम्
(घ) तालव्य-वर्णनाम् उच्चारणार्थं दन्तः स्थानं स्पृशति।
हिन्दी – तालव्य वर्णों के उच्चारण के लिए दाँत स्थान को छूता है।
उत्तरम् – न
(ङ) मूर्धन्यानां वर्णानाम् उच्चारणार्थं जिह्वा स्थानं स्पृशति।
हिन्दी – मूर्धन्य वर्णों के उच्चारण के समय जीभ स्थान को स्पर्श करती है।
उत्तरम् – आम्
(च) तत्तत्स्थानस्य एव कश्चित् पूर्वभागः, तत्तत्स्थानस्य परभागं स्पृशति।
हिन्दी – प्रत्येक उच्चारण-स्थान का कोई आगे का भाग, उसी स्थान के पिछले भाग को छूता है।
उत्तरम् – आम्
४. मुखे उपलभ्यमानानि स्थानानि बहिष्ठात् अन्तः यथाक्रमं (अर्थात् विपरीत-क्रमेण) लिखन्तु – (नीचे दिए गए वाक्यों में सही भाव को बताने के लिए ‘हाँ’ या ‘नहीं’ लिखें।)
(क) मूर्धा – तालु – कण्ठः
हिन्दी – मूर्धा के बाद तालु आता है, फिर कण्ठ।
(ख) दन्तः – मूर्धा – तालु – कण्ठः
हिन्दी – दाँत के पश्चात मूर्धा, फिर तालु और उसके बाद कण्ठ।
(ग) तालु – कण्ठः
हिन्दी – तालु के बाद कण्ठ स्थित होता है।
(घ) कण्ठः – (मुख का सबसे भीतर का उच्चारण-स्थान)
हिन्दी – कण्ठ सबसे अंदर का उच्चारण स्थान होता है।
(ङ) ओष्ठः – दन्तः – मूर्धा – तालु – कण्ठः
हिन्दी – होंठों के बाद दाँत, फिर मूर्धा, उसके बाद तालु और अंत में कण्ठ आता है।
५. यथायोग्यं मेलनं कुरुत –
(उचित मेल करें।)
सामान्य-स्थान | विशेष-स्थान | सामान्य-करण | विशेष-करण |
---|---|---|---|
ओष्ठः | उत्तर ओष्ठः | स्वस्थानं करणम् | अधर ओष्ठः |
दन्तः | दन्तः | जिह्वा करणम् | जिह्वाग्रः |
नासिका | नासिकामूल का ऊपरी भाग | स्वस्थानं करणम् | नासिकामूल का निचला भाग |
कण्ठः | कण्ठ का पृष्ठभाग | जिह्वा करणम् | कण्ठ का अग्रभाग |
मूर्धा | मूर्धा | स्वस्थानं करणम् | जिह्वोपाग्रः |
तालु | तालु | जिह्वा करणम् | जिह्वामध्यः |